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महाबंधे णवरि थीणगिद्धितिगं भिच्छत्तं अणंताणुबं०४ चदुआयु० पर-उस्सा. आदावुज्जो० तित्थय० सिया बं० सिया अबं० । एवं तिण्णं कसाया० । पच्चक्खाणावरणी० कोध बं०-पंचणा० छदंस० सत्तक० भयदु० तेजाक. वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० णियमा बंधगो। थीण गिद्धि०३ मिच्छत्तं अट्ठकसा० पर० उस्सा० चदु आयु० आदावुज्जो० तित्थय सिया बं०, सिया अबं० । सेसं मिच्छत्तभंगो। एवं तिण्णं कसायाणं। कोधसंज० बंधंतो-पंचणा० चदुदंस० तिणं संज० पंचंतरी० णियमा [बंधगो]। पंचदंस० मिच्छत्तं बारसक० भयदु० चदुआयु० आहारदुगं तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ आदावुज्जो० णिमि० तित्थय० सिया बं० सिया अबं० । दोवेदणी० सिया बं० । दोण्णं एकद० [बंधगो]। ण चेव अबं० । एवं जस० अज्जस० दोगोदाणं । इत्थिवे. सिया०, पुरिस० सिया० णपुंस० सिया बं० । तिण्णं वेदाणं एक्कदरं बंधगो] । अथवा तिण्णंपि अबं० । एवं हस्सरदि-अरदिसोग-दोयुगला० चदुग०
चाहिए। विशेष, स्त्यानगृद्धि ३, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४, आयु ४, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, तीर्थकरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। अप्रत्याख्यानावरण मान, माया, लोभका अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके समान वर्णन जानना चाहिए ।
प्रत्याख्यानावरण क्रोधका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ७ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैस-कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ८ कषाय ( अनन्तानुबन्धी ४, अप्रत्याख्यानावरण ४), परघात, उच्छ्वास, ४ आयु, आताप, उद्योत, तीर्थकरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । शेष प्रकृतियों के विषयमें मिथ्यात्वके बन्धकके समान वर्णन जानना चाहिए। प्रत्याख्यानावरण मान, माया तथा लोभका बन्ध करनेवालेके प्रत्याख्यानावरण क्रोधके समान जानना चाहिए।
___ संज्वलन क्रोधका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ३ संज्वलन, ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है। ५ दर्शनावरण ( निद्रापंचक ), मिथ्यात्व, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, ४ आयु, आहारकद्विक, तैजस, कार्मणा, वणे ४, अगुरुलघु ४, आताप, उद्योत, निर्माण, तीर्थकरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। दो वेदनीयका स्यात् बन्धक है। दोमें-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। यश कीर्ति, अयशःकीर्ति तथा २ गोत्रोंका इसी प्रकार जानना चाहिए । अर्थात् इनमें से अन्यतरके बन्धक है'; अबन्धक नहीं हैं।
विशेष-संज्वलन क्रोधका अनिवृत्तिकरण गुणस्थान पर्यन्त बन्ध पाया जाता है तथा यश-कीर्ति, उच्चगोत्रका सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान पर्यन्त बन्ध होता है। इस कारण यहाँ इनका अबन्धक नहीं कहा गया है। ___स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है । पुरुषवेदका स्यात् बन्धक है । नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीनमें-से एकतरका बन्धक है। तीनोंका भी अबन्धक है।
विशेष-वेदका ‘बन्ध वें गुणस्थानके प्रथम भाग पर्यन्त होता है तथा संज्वलन क्रोधका बन्ध ९वें गुणस्थानके दूसरे भाग पर्यन्त होता है । इस कारण यहाँ वेदोंका अबन्धक भी कहा है।
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