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________________ पयडिबंधाहियारो १३५ छस्संठा० चदुआणु० तसादिणवयुग० दोगोदं च । दो अंगो० छस्संघ० दो विहा० दो सरी० ( सरं ) सिया बं० सिया अबं० । दोण्णं छष्णं दोण्णं दोणं पि एकदरं बं० । अथवा एदेसिं चेव अबं० । एवं अरदिसोग-अथिर-असुभ-अज्जसगित्तीणं । १०६. मिच्छत्तं बंधंतो-पंचणा० णवदंस० सोलसक० भयद्गुं० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० णियमा बंध० । सादं सिया बं० असादं सिया बं० । दोण्णं पगदीणं एक्कदरं बं० । ण चेव अबं० । एवं तिण्णं वेदाणं हस्सरदि० अरदिसो० दोयुग० चदुग० पंचजादि-दोसरी०-छस्संठा० चदुआणु० तसथावरादि-णवयुगल-दोगोदाणं च । चदुआयु० परघा०-उस्सा० आदावुज्जो० सिया बं० । दोण्णं अंगो० छस्संघ० दो विहा० दो सर०सिया बं०, सिया अबं० । दोण्णं छण्णं दोणं दोणं पि एक्कदरं बं०, अथवा दोण्णं दोणं पि अबंधगो । ११०. अपचक्खाण० कोधं बं०-पंचणा० छदंसणा० एकारसक०-भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि०पंचंत० णियमा बं० । सेसं मिच्छत्तभंगो । ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, सादि ६ युगल तथा २ गोत्रका भी इसी प्रकार वर्णन जानना चाहिए। दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, दो स्वरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। इन २, ६, २, २ में से एकतरका बन्धक है अथवा इनका भी अबन्धक है । 'अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्तिका इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-असाताके समान अरति शोकादिकी बन्धव्युच्छित्ति प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें होती है । इस कारण असाताके बन्ध करनेवालेके समान इनका भी वर्णन कहा है। १०६. मिथ्यात्वका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण-शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायका नियमसे वन्धक है। सातावेदनीयका स्यात् बन्धक है। असाताका स्यात् बन्धक है। दोनोंमें-से अन्यतरका बन्धक है अबन्धक नहीं है। ३ वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, ४ गति, ५ जाति, दो शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, बस-स्थावरादि ९ युगल तथा दो गोत्रका इसी प्रकार जानना चाहिए अर्थात् इनमें-से एकतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। चार •आयु, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योतका स्यात् बन्धक है। दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति तथा २ स्वरका स्यात् वन्धक है, स्यात अबन्धक है। इन २, ६, २,२ में से एकतरका बन्धक है अथवा २, ६, २, २ का भी अबन्धक है। विशेष-एकेन्द्रियके अंगोपांग, संहनन, विहायोगति तथा स्वरका अभाव है। इससे एकेन्द्रियको अपेक्षा इन प्रकृतियोंक। अबन्धक कहा है। ११०. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ११ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण , वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात; निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है। शेष प्रकृतियोंका मिथ्यात्वके बन्धकके समान भंग जानना १. "छट्टे अथिरं असुहं असादमजसं च अरदि सोगं च ।"-गो क०,गा०६८ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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