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________________ १३४ महाबंधे दोणं छण्णं दोण्णं दोणं एकदरं बं० । अथवा दोण्णं छण्णं दोण्णं दोणं पि अबंधगो । एवं पचला। १०८. सादं बंधंतो पंचणा० णवदंस० मिच्छत्तं सोलसक० भयद्गु० तिण्णिआयु० आहारदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ आदावुज्जो० णिमिणं तित्थय० पंचंत. सिया ५० सिया अबं० । तिण्णि वे० हस्सादि-दोयुग० तिण्णिगदि-पंचजादि-दोसरीरछस्संठा० दो अंगो० छस्संघ० तिण्णि आणु० दो विहा० तसादिदसयुग० दोगो० सिया बं० सिया अबं० । एदेसिं एकदरं बं०, अथवा एदेसिं अबंधगो । असादं बंधंतो-पंचणा० छदंसणा० चदुसंज० भयदुगु०-तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० णियमा बं० । थीणगिद्धि०४ (३) मिच्छ. बारसक० तिण्णिआयु परघादुस्सा. आदावुज्जो० तित्थय० सिया बं० सिया अबं० । तिण्णं वेदाणं सिया बं०। तिण्णं वेदाणं एकदरं बं० । ण चेव अवं० । हस्सरदि सिया बं० । अरदिसोग सिया बं० । दोण्णं युगलाणं एकदरं बंधगो। ण चेव अपं० । एवं चदुगदि-पंचजादि-दोसरी० है। इन २, ६, २, २ में-से अन्यतरका बन्धक है अथवा २, [8] २,२ का भी अबन्धक है। प्रचलाका बन्ध करनेवालेके निद्राके समान भंग है। १०८. साताका बन्ध करनेवाला -५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, नरकायुको छोड़कर ३ आयु, आहारकद्विक, तैजस, कार्मणशरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, आताप, उद्योत, निर्माण, तीर्थकर तथा ५ अन्तरायोका स्यात बन्धक है. स्यात अबन्धक है। विशेष-साताका बन्धक सयोगी जिन पर्यन्त पाया जाता है, किन्तु ज्ञानावरणादिका बन्ध सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान पर्यन्त होता है अतः साताके बन्धकके ज्ञानावरणादिका बन्ध हो, तथा न भी हो। तीन वेद, हास्यादि दो युगल, ३ गति, ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन,३ आनुपूर्वी. २ विहायोगति. त्रसादि दस यगल तथा दो गोत्रका स्यात बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । इनमें से किसी एकका बन्धक है अथवा इनका भी अबन्धक है। असाताका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण (स्त्यानगृद्धित्रिक बिना), ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, १२ कषाय, ३ आयु, परघात, उच्छ्वास, अ न, आताप, उद्योत. तीर्थकरका स्यात बन्धक है, स्यात अबन्धक है। तीन वेदोंका स्यात् बन्धक है तथा इनमें से किसी एकका बन्धक है अबन्धक नहीं है। विशेष-असाता प्रमत्तसंयत पर्यन्त बँधता है तथा वेदका अनिवृत्तिकरणपर्यन्त बन्ध होता है। अतः असाताके बन्धकको वेदोंका अबन्धक नहीं कहा है, कारण यहाँ वेदका बन्ध सदा होगा। हास्य, रतिका स्यात् बन्धक है। अरति, शोकका स्यात् बन्धक है। दो युगलों मेंसे अन्यतर युगलका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। ४ गति, ५ जाति, २ शरीर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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