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पयडिबंधाहियारो चदुणाणा० चदुदंस० पंचंतरा० ।
१०६. णिहाणिदं बंधंतो पंचणा० अट्ठदंसणा० सोलसक० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० णियमा बं० । सादं सिया [बं० ], असादं सिया [पं० ] । दोण्णं एकदरं बं०, ण चेव अबं० । एवं वेदणीयभंगो तिणि वे० हस्सरदि-अरदिसो० चदुगदि० पंच [जादि ] दोसरीर-छस्संठा चदुआणु० तसथावरादिणवयुगलं दोगोदाणं । मिच्छत्त-चदुआयुगं परघादुस्सा० आदावुञ्जो० सिया [बं० ], सिया अबं० । दो-अंगो० छस्संघ० दो विहा० दोसरं सिया पं० । दोण्णं छण्णं दोण्णं दोणं पि एकदरं बं० । अथवा दोण्णं छण्णं दोण्णं दोण्णं पि अबं० । एवं पचलापचलाथीणगिद्धि-अणंताणुबंधि०४ ।
१०७. णिदं बंधतो पंचणा० पंचदंसणा० चदुसंज० भयदु० तेजाक. वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० णियमा ५० | थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-बारस० चदुआयु. आहारदुगं पर० उस्सा० आदावुजो० तित्थ० सिया० [बं० ] सिया अबं० । सादं सिया २०, असादं सिया [बंधगो] । दोण्णं पगदीणं एकदरं बं० । ण चेव अबं० । एवं तिणि वे० हस्सरदिदोयु० चदुग० पंचजा० दोसरी० छस्संठा० चदुआणु० तसथावरादिणवयुगलं दोगोदाणं च । दोअंगो०छस्संघदोविहा० दोसरं सिया [बं० ] श्रुनादि ४ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ५ अन्तरायका आभिनियोधिक ज्ञानावरणके समान भंग जानना चाहिए।
१८६. निद्रा-निद्राका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ८ दर्शनावरण, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तेजस, कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है । साताका स्यात् बन्धक है। असानाका स्यात बन्धक है। दोमें-से अन्यतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है। तीन वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, ४ गति, ५ जाति, औदारिक, क्रियिक शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी. तस-स्थावरादि ६ युगल तथा दो गोत्र में वेदनीयके समान भंग है अर्थात् एकतरके बन्धक हैं ; अबन्धक नहीं है । मिथ्यात्व, ४ आयु, परघात, उच्छवास, आताप, उद्योतका स्यात् बन्धक है , स्यात् अवन्धक है। २ अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक है। इन २, ६, २, २ में-से अन्यतरका वन्धक है अथवा २, ६,२,२ का भी अवन्धक है। प्रचला-प्रचला, त्यानगृति तथा अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकका निद्रानिद्राके समान भंग है।
१०७. निद्राका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावर ण, ५ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तेजस- कार्मण शरीर, वण ४, अगुम्लत्रु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, १२ कपाय (४ संज्वलनको छोड़कर ), ४ आयु, आहारकद्विक, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत तथा तीर्थकरका स्यात् बन्धक है। सातावेदनीयका स्यात् बन्धक है , असाता वेदनीयका स्यात् बन्धक ह। दानांम-से अन्यतरका वन्धक है ; अबन्धक नहीं है। तीन वेद, हास्य, रति, अर ति, शोक, ४ गति, ५ जाति,
औदारिक वे क्रियिक शरीर, ६ संस्थान, .४ आनुपूर्वी, स-स्थावरादि : युगल तथा २ गोत्रका इसी प्रकार जानना चाहिए। २ अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक
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