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महाबंधे
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[परत्थाणसणिणयास-परूवणा] १०५. परत्थाणसग्णियासे पगदं दुविधो ओघे० आदे । ओघे आभिणिवोधियणा० बंधंतो चदुणाणा० चदुदंसणा० पंचंत० णियमा [बंधगो] | पंचदंस० मिच्छत्तसोलसक० भयदुगुं० चदुआयु० आहारदु० तेजाक. वण्ण०४ अगु०४ आदावुज्जो० णिमिणं तित्थयरं सिया बं०, सिया अबं० । सादं सिया बं०, सिया अबं० । असादं सिया बं०, सिया अबं० । दोण्णं पगदीणं एकदरं बंधगो। ण चेव अबं० । इथि० सिया बं०, पुरिस० सिया [बं० ], णपुंस० सिया० । तिण्णं वेदाणं एकदरं बं० । अथवा तिण्णंपि अबंधगो। वेदभंगो हस्सरदि-अरदि-सोग-दोयुगला० चदुगदि. पंचजादि-दोसरीर-छस्संठा० दोअंगो० छस्संघ० चदुआणु० दो विहा० तस-थावरादिणवयुगलाणं । जस० अजस० दोगोदं सादभंगो। यथा आभिणिबोधियणा० तथा
[परस्थान सन्निकर्ष ] ___ १०५. यहाँ परस्थान सन्निकर्ष प्रकृत है । उसका ओघ तथा आदेशसे दो प्रकार निर्देश करते हैं । यहाँ सजातीय तथा विजातीय एक साथमें बंधनेवाली प्रकृतियोंकी प्ररूपणा की गयी है।
ओघसे-आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका बन्ध करनेवाला-श्रतादि ज्ञानावरण ४, दर्शनावरण ४ तथा अन्तराय ५ का नियमसे बन्धक है।
विशेषार्थ-यशःकीर्ति उच्चगोत्रका नियमसे बन्ध न होने के कारण यहाँ उनका उल्लेख नहीं किया गया है।
निद्रादि पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, ४ आयु, आहारकद्विक, तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, आताप, उद्योत, निर्माण तथा तीर्थंकरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। साताका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । असाताका स्यात् बन्धक हैं, स्यात् अबन्धक है । दोनों में-से अन्यतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है ।
विशेषार्थ-दोनोंका अबन्धक अयोगकेवली गुणस्थानवर्ती होगा, वहाँ मतिज्ञानावरण ही नहीं है । अतः दोनोंके अबन्धकका अभाव कहा है।
___ स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है । पुरुषवेदका स्यात् बन्धक है । नपुंसक वेदका स्यात् बन्धक है । तीनों में से एकतरका बन्धक है अथवा तीनोंका भी अबन्धक है।
विशेषार्थ-वेदका बन्ध नवमे गुणस्थान पर्यन्त होता है और मतिज्ञानावरणका सूक्ष्मसाम्पराय तक बन्ध होता है। अतः मतिज्ञानावरणके बन्धकके वेदका बन्ध हो तथा न भी हो। इससे यहाँ तीनोंका अबन्धक भी कहा है।
___ हास्य-रति, अरति-शोक ये दो युगल, ४ गति, ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, ४ आनुपूर्ती, २ विहायोगति, स-स्थावरादि ९ युगलका• वेद के समान भंग है। अर्थात इनमें से एकतरके बन्धक हैं अथवा सबके भी अबन्धक हैं। यशःकीर्ति. अयश-कीर्ति. दो गोत्रका सातावेदनीयके समान भंग है अर्थात् अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है ।
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