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पयडिबंधाहियारो
१२७ अथवा दोण्णं छण्णं दोण्णं दोण्णं पि अबंधगो । परघादुस्सा. आदावज्जो० तित्थयरं सिया.[बं०], सिया अबंध० । एवं असुभ-अज्जसगित्ति ।
६१. थिरं बंधतो तिण्णि-गदि सिया बं० । तिण्णं गदीणं एक दरं बं०, ण चेव अबं० । एवं पंच-जादि दो सरीरं-छस्संठा- तिण्णि-आणु० तसथावरादि-दोणि युगलं सुभादि-चदुयुगलं सिया बं० । एदेसि एकदरं बंधगो । ण चेव अबंध। आहारदुगं आदावुज्जोव० तित्थयरं सिया बं०, सिया अ० । दो-अंगो० छस्संघ० दोवि० दो सरं सिया बं० । दोण्णं छण्णं दोण्णं दोण्णं पि एक्कदरं बं० । अथवा दोण्णं छण्णं दोण्णं दोग्णं पि अबंध० । तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ पज्जत्त-णिमि० णियमा बंधगो। एवं सुभ-जसगित्ति । णवरि जसगित्तीए सुहुम-साधारणं वज्जं ।
६२. तित्थयरं बंधंतो दो-गदि सिया बंध० । दोण्णं गदीणं एक्कदरं बं० । ण चेव अबं० । एवं दो-सरीरं० दो अंगोवं० दो आणु० थिरादि-तिणि यु० एक्कदरं बंधगो। ण चेव अबंध० । पंचि तेजाक० समचदु० वण्ण०४ अगु० ४ पसत्थ० तस०४ सुभगसुस्स०-आदे० णिमिणं णियमा बं० । आहारदुगं वज्जरिसभसंघ० सिया [बंधगो] । बन्धक है । २, ६, २, २ में से एकतरका बन्धक है अथवा २, ६, २, २ का भी अबन्धक है । परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत तथा तीर्थंकर प्रकृतिका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है।
अशुभ तथा अयश कीर्ति के बन्ध करनेवालेमें इसी प्रकार जानना चाहिए।
९१. स्थिरका बन्ध करनेवाला-३ गति ( नरकको छोड़कर ) का स्यात् बन्धक है । ३ गतिमें से एकतरका बन्धक है ; अबन्धक नहीं है। ५ जाति, औदारिक, वैक्रियिक शरीर, ६ संस्थान, ३ आनुपूर्वी, त्रस-स्थावरादि दो युगल, शुभादिक चार युगलका स्यात् बन्धक है। इनमें से एकतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है । आहारकद्विक, आताप, उद्योत तथा तीर्थकर प्रकृतिका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। दो अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वरका स्यात् बन्धक है । इन २, ६, २,२ में-से एकतरका बन्धक है । अथवा २, ६,२,२ का भी अबन्धक है । तैजस-कार्मण, वर्ण४, अगुरुलघु ४, पर्याप्तक तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है।
शुभ तथा यश कीर्तिके बन्ध करनेवाले में इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष यह है कि यशाकीर्तिके बन्धकके सूक्ष्म तथा साधारण प्रकृतिको छोड़ देना चाहिए . अर्थात् इनका वन्ध इसके नहीं होगा।
९२. तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध करनेवाला-मनुष्य, देवगतिका स्यात् बन्धक है। दो गतियों में से किसी एकका बन्धक है । अबन्धक नहीं है।
विशेष-तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध सम्यक्त्वीके ही होता है। अतः मिथ्यात्व में बँधनेवाली नरकगति तथा सासादनमें बँधनेवाली तिर्यंचगतिका बन्ध इसके नहीं होगा।
दो शरीर, २ अंगोपांग, २ आनुपूर्वी. स्थिरादि तीन युगलमें से एकतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है । पंचेन्द्रिय जाति, तैजस-कार्मणं शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, बस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है। आहारकद्विक, वनवृषभसंहननका स्यान् बन्धक है।
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