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महाबंध
दोणं पि एकदरं बं० । अथवा दोष्णं छष्णं दोष्णं दोष्णं पि अबं० । सेसं नियमा aat | एवं पत्तेसरी० ।
८६. सुमं बंधतो तिरिक्खगदि- एइंदियजादि- तिष्णि सरी० - हुंडसं० वष्ण०४ तिरिकखाणु ० अगु० उप० थावर -दूर्भाग- अणादेज्ज-अज्जस - णिमिणं णियमा बं० । पज्जत्तापज्जत्त- पत्तेय० साधारण-थिराथिर - सुभासुभ० सिया बं० । एदेसिं एकदरं बं०। ण चैव अब० । परघादुस्सा० सिया बं० सिया अबं० । एवं साधारणं० । अपज्जत्तं बं० दो दि सिया [ ० ] | दोष्णं एकदरं बं० । ण चेव अबं० । तिण्णि सरीर-हुंड संठा० वण्ण०४ अगु० उप० अथिर असुभ - दूभग अणादेज्ज० अजस० णिमिणं णियमा बं० । ओरालि० अंगो असंपत्तसेव० सिया बं० । पंचजादि-दो आणु० तस्थावरादि- तिण्णि युग० सिया बं० । एदेसिं एकदरं बं० ण चेव अबं० ।
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६०. अथिरं बंधतो चदुगदि- सिया बं० । [चउण्णं गदीणं] एकदरं [वधगो] । ण चेव अ० । एवं पंचजादि दो सरीर० छस्संठा० चत्तारि आणुपुव्वि० तस थावरादियुग । तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमिणं णियमा ब ० | दो अंगो० संघ० दो विहा० दो सरं सिया बं० । दोष्णं छष्णं दोष्णं दोष्णं वि एकदरं बं० ।
है अथवा २, ६, २, २ का भी अबन्धक है, शेष प्रकृतियोंका भी नियम से बन्धक है । प्रत्येक शरीर के बन्ध करनेवालेमें - इस प्रकार जानना चाहिए।
८९. सूक्ष्मका बन्ध करनेवाला - तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक-तैजस- कार्मण शरीर, हुंडक संस्थान, वर्ण ४, तिर्यंचानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, स्थावर, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है ।
विशेष – सूक्ष्म नामक कर्मका सन्निकर्ष एकेन्द्रिय जीवके साथ ही पाया जाता है, अतएव यहाँ एकेन्द्रिय जातिका ही ग्रहण किया गया है ।
पर्याप्तक, अपर्याप्तक, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभका स्यात् बन्धक है । इनमें से एकतरका बन्धक है : अवन्धक नहीं है । परघात, उच्छ्वासका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है ।
साधारण बन्ध करनेवाले में इसी प्रकार जानना चाहिए ।
अपर्याप्तकका बन्ध करनेवाला- दो गति ( तिर्यंच तथा मनुष्यगति ) का स्यात् बन्धक है । दो में से एकतरका बन्धक है; अवन्धक नहीं है ।
औदारिक- तैजस- कार्मण शरीर, हुंडकसंस्थान, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है । औदारिक अंगोपांग, सम्प्राप्तापादिका संहननका स्यात् बन्धक है । ५ जाति, २ आनुपूर्वी, त्रस स्थावरादि तीन युगलका स्यात् बन्धक हैं। इनमें से एकतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है ।
९०. अस्थिरका बन्ध करनेवाला - ४ गतिका स्यात् बन्धक है। चार गतियोंमें से एकतरका बन्धक है; अवन्धक नहीं है। इसी प्रकार ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, बस-स्थावरादि ८ युगलों में जानना चाहिए। तैजस- कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणका नियमसे बन्धक हैं । दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका स्यात्
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