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पयडिबंधाहियारो
१२५ तिरिक्ख-मणुसाणुपु० थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-भग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज-अणादे० जस० अज्जसः। तेजाक. वण्ण०४ अगु०४ तस०४ णिमि० णियमा बं० । छस्संघ-सिया बं । छण्णं एक्कदरं बधगो। अथवा छण्णं पि अब । उज्जोव० सिया ब० सिया अब । एवं दुस्सर० ।
___८७. तसं बंधतो चदुगदि सिया ब०। चदुणं एकदरं । ण चेव अब । एवं भंगो चदुजादि-दोसरी० छस्संठा० दो अंगो० चदु-आणुपु० पज्जत्तापज्ज० थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-भग-आदेज्ज-अणादेज्ज-जस०-अज्जस० । आहारदुगं परघादु० उज्जोवं तित्थय० सिया ब०, सिया अब । तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० बादरपत्ते-णिमि० णियमा बं० । छस्संघ० दो विहा० दो सरं सिया बं० । छण्णं दोण्णं दोण्णं पि एक्कदरं बं० । अथवा छण्णं दोण्णं दोण्ण' पि अबं० ।
८८. बादरणामं बंध तो चद्गदि सिया बं०, सिया अबं०। चदुण्णं गदीणं एक्कदरं बं० । ण चेव अपं० । एवं गदिभंगो पंचजादि-दो सरी० छस्संठा० चदुआणुपु० तसादिणवयु० | आहारदु० परघादुस्सा० आदावज्जो० तित्थय० सिया बं० सिया अबं० । दोणं अंगो० छस्संघ० दो विहा० दो सरं सिया बं० । दोण्णं छण्णं दोणं
अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्तिमें पूर्ववत् है अर्थात् स्यात् बन्धक है, एकतरके बन्धक हैं; अबन्धक नहीं हैं । तैजसकार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४ तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है, ६ संहननका स्यात् बन्धक है, ६ में से किसी एकका बन्धक है अथवा ६ का भी अबन्धक है।
विशेष—यहाँ नरकगति तथा एकेन्द्रियकी अपेक्षा संहननका अबन्धकं भी कहा गया है।
उद्योतका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । दुस्वरमें ऐसा ही वर्णन जानना चाहिए ।
८७. त्रसका बन्ध करनेवाला-चार गतिका स्यात् बन्धक है, ४ में-से अन्यतरका बन्धक है. अबन्धक नहीं है । ४ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ४ आनुपूर्वी, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, आदेय, अनादेय, यशाकीर्ति, अयश कीर्तिमें इसी प्रकार भंग जानना चाहिए। आहारकद्विक, परघात, उच्छ्वास, उद्योत, तीर्थकर प्रकृतिका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। तैजस-कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, बादर, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्धक है। ६ संहनन, दो विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक है । इन ६, २,२ में-से एकतरका बन्धक है अथवा ६, २, २ का भी अबन्धक है।
८८. बादर नामकर्मका बन्ध करनेवाला-४ गतिका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । चार गतियों में से एकतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है । ५ जाति, दो शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, त्रसादि नवयुगलमें गतिके समान भंग जानना चाहिए । आहारकद्विक, परघात, उच्छवास, आताप, उद्योत. तथा तीथकरका स्यात बन्धक है, स्यात अबन्धक है। दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक है। २, ६, २, २ में से किसी एकका बन्धक For Private & Personal Use Only
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