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________________ १२२ महाबंधे अगु० उप० णिमि० णियमा । दो-अंगोछस्संघ० दो-विहा० दो-सरं सिया । दोण्णं छण्णं दोण्णं दोण्णं एक्कदरं बध० । अथवा दोण्णं छण्णं दोण्णं दोण्णं पि अ० । परघादुस्सा० आदावुज्जो सिया बसिया अब । एवं हुंडभंगो दूभग-अणादेज्ज । ओरालिय० अंगोवंगं बंधतो दो-गदि सिया बसिया अब। दोणं गदीणं एक्कदरं [बधगो] । ण चेव अ ० । एवं चदुजादि० छस्संठा० छस्संघ० दो आणु० पज्जत्तापज्जत्त० थिरादिपंचयुगलाणं । ओरालिय-तेजाक० वण्ण०४ अगुरु० उप० तस-बादरपत्तेय० णिमि० णियमा । परघादुस्सा० उज्जो० तित्थयरं सिया बं । दो विहा० दो सरं सिया बं । दोण्णं दोण्णं एक्कद० । अथवा दोण्णं दोण्णं पि अब । ८२. वज्जरिसभं बंधतो दो-गदि सिया ब०, सिया अब । दोणं गदीणं एकदरं ब० । ण चेव अब । एवं छस्संठा० दो आणु० दो-विहा० थिरादिछयुगलाणं । पंचिंदि० तिण्णि-सरी० ओरालि० अंगो० वण्ण०४ अगु०४, तस०४ णिमि. णियमा बौं । उज्जोव तित्थ० सिया [बंधगो] । एवं चदु-संघ० । णवरि तित्थयवर्ज। ५ जाति, २ शरीर, ३ आनुपूर्वी ( देवानुपूर्वी बिना ) सादि नव युगल में इसी प्रकार वर्णन है । तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है। दो अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति तथा २ स्वरका स्यात् बन्धक है । इन २, ६,२, २ में से किसी एकका बन्धक है । अथवा २, ६, २, २ का भी अबन्धक है । परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योतका स्यात् बन्धक, स्यात् अबन्धक है। दुभेग तथा अनादेयके बन्ध करनेवालेमें हुडक संस्थानके समान भंग है । औदारिक अंगोपांगका बन्ध करनेवाला-दो गति ( मनुष्य-तिर्यंचगति ) का स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। दोमें-से एकका बन्धक है ; अबन्धक नहीं है । चार जाति, ६-संस्थान, ६ संहनन, २ आनुपूर्वी, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, स्थिरादि पंचयुगलमें इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेषार्थ-एकेन्द्रियके अंगोपांगका अभाव होनेसे यहाँ एकेन्द्रिय जातिको छोड़कर चार जातियोंका कथन किया गया है। - औदारिक तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, त्रस, बादर, प्रत्येक तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है । परघात, उच्छ्वास, उद्योत, तीर्थकरका स्यात् बन्धक है । दो विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक है। दो दो में से किसी एकका बन्धक है अथवा दो दोका भी अबन्धक है। ८२. वनवृपभसंहननका बन्ध करनेवाला-तियं चगति, मनुष्यगतिका स्यात् बन्धक है; स्यात् अबन्धक है । दो गतियोंमें-से अन्यतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है। इस प्रकार छह संस्थान, दो आनुपर्वी, दो विहायोगति, स्थिरादि छह युगल में जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय जाति, तीन शरीर, औदारिक अंगोपांग, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४ तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है; उद्योत, तीर्थंकरका स्यात् बन्धक है । आदि तथा अन्तके संहननको छोड़कर शेष ४ संहननके बन्ध करनेवालेमें यहाँ यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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