SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ महाबंधे ७२. एइंदियं बंधंतो तिरक्खग० ओरालिय-तेजाक. हुंड० वण्ण०४ तिरिक्खाणु० अगु०उप० थावर-भग-अणा० णिमि० णियमा० । पर० उस्सा० आदावुजो. सिया बं०, सिया अबं० । बादरसुहुम० सिया [बं०] । दोण्णं. एकदरं बं०, ण चेव अबं०। एवं पज्जत्तापञ्जत्त-पत्तेय-साधारण-थिराथिर-सुभासुभ-जस-अज. सिया एकतरं बं०, ण चेव अ० । एवं थावरं । ७३. बीइंदि० बंध० तिरिक्खग० ओरालि. तेजाकम्म. हुंडसं० ओरालि. अंगो० असंपत्त. वण्ण०४ तिरिक्खाणुपु० अगु० उप० तस० बादरपत्ते. दूभगअणा० णिमि० णियमा० [बंधगो] । परघादुस्सा० उजोक. अप्पसत्थ०. दुस्स० सिया [ब ] सिया अब । पजत्ता अपज. सिया [4] सिया [अब०] । दोणं युगजो० (१) एक्क० ब०, ण चेव अब । एवं थिरादि-तिण्णियुगलाणं एकतरं २०, ण चेव अबं० एवं तीइंदि० चतुरिंदि० । ७४. पंचिंदिय-जादिणामं बधंतो णिरयगदि सिया 40, सिया अब । एवं तिरिक्ख-मणस-देवगदि० । चदुणं गदीणं एक्कदरं० २०, णव चेव अब । एवं दो सरीरं० छस्संठा० दो-अंगो० चदुआणु० पजत्तापजत्त० थिरादि पंचयुगलाणं । आहारदुगं परघादुस्सा० उजओ० तित्थय० सिया , सिया अ०। तेजाक. वण्ण०४ __७२. एकेन्द्रिय जातिका बन्ध करनेवाला-तिर्यंचगति, औदारिक-तैजस कार्मण शरीर, हुंडक संस्थान, वर्ण ४, तिथंचानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, स्थावर, दुभंग, अनादेय और निर्माणका नियमसे बन्धक है । परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योतका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। बादर, सूक्ष्मका स्यात् बन्धक है। दोमें-से एकका बन्धक है, अबन्धक नहीं है। इसी प्रकार पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश कीर्ति-अयश कीर्तिमें-से एकतरका स्यात् बन्धक है; अबन्धक नहीं है। स्थावर के विषयमें किन्द्रियके समान जानना चाहिए। - ७३. दो इन्द्रियका बन्ध करनेवाला-तियंचगति, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, हुंडक संस्थान, औदारिक अंगोपांग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, वर्ण ४,तिर्यंचानुपूर्वी, अगुरुलघ. उपघात, त्रस, बादर, प्रत्येक, दर्भग, अनादेय तथा निर्माणका नियमसे बन्धक है। परघात, उच्छ्वास, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति तथा दुस्वरका स्यात् बन्धक, स्यात् अबन्धक है। पर्याप्त-अपर्याप्तक स्यात् बन्धक, स्यात् अबन्धक है। दोनोंमें-से एकका बन्धक है, अबन्धक नहीं है। स्थिरादि तीन युगल में से एकतरका बन्धक है; अबन्धक महीं है । त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रियका बम्ध करनेवालेके इसी प्रकार जानना चाहिए। ७४. पंचेन्द्रिय जाति नामकर्मका बन्ध करनेवाला-नरकगतिका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। इसी प्रकार तिर्यंच-मनुष्य-देवगतिमें जानना चाहिए अर्थात् स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। चारों गतियों में से एकका बन्धक है, अबन्धक नहीं है । दो शरीर ( औदारिक, वैक्रियिक ), छह संस्थान, दो अंगोपांग, ४ आनुपूर्वी, पर्याप्त, अपर्याप्त, स्थिरादि पंच युगलमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए । आहारकद्विक, परघात, उच्छ्वास, उद्योत तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy