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पयडिबंधाहियारो ६३. णपुंसं बंधं० मिच्छत्त० सोलसक० भयदुगु० णियमा बं० । हस्सरदि सिया० [ बं० ] अरदिसोग० सिया बं० । दोण्णं युगलाणं एकतरं बं०, ण चेव अबं० ।
६४. हस्सं बंधं० मिच्छत्त० बारसक० सिया बं० । चदुसंज० रदि-भय-दुगुं णियमा ०। इत्थि० पुरिस० णपुंस० सिया बं० । तिणि वेदाणं एक० [बंधगो ] ण चेव अबं० । एवं रदि।।
६५. अरदिं बंध० मिच्छ० वारसक. सिया [बं०] । चदुसंज. सोगभयदुगु० णियमा बं० । इत्थि. पुरिस० णपुंस० सिया० । तिण्णं वेदाणं एकद० बंध०, ण चेव अबंध० । एवं सोगं।
६६. भयं बंधतो मिच्छत्त-बारसक० सिया० [ बंधगो]। चदुसंजल० दुगु० णियमा पं० । इथि० पुरिस० णपुंस० सिया० । तिण्णं वेदाणं एकद० [बंधगो]
विशेषार्थ-पुरुषवेदके बन्धकके संज्वलन ४ का अनिवृत्तिकरण गुणस्थान पर्यन्त नियमसे बन्ध होता है। अतः यहाँ संज्वलनचतुष्टयको छोड़कर बारह कषायोंका विकल्प रूपसे बन्ध कहा है।
हास्य-रतिका स्यात् बन्धक है। अरति-शोकका स्यात् बन्धक है। दोनों युगलों में से किसी एक युगलका बन्धक है अथवा दोनोंकाहीअबन्धक है। चार संज्वलनका नियमसे बन्धक है।
६३. नपुंसकवेदको बाँधनेवाला-मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्साका नियमसे बन्धक है। हास्य-रतिका स्यात् बन्धक है। अरति-शोकका स्यात् बन्धक है । दोनों युगलों में-से अन्यतरका बन्धक है ; अबन्धक नहीं है।।
विशेषार्थ-नपुंसकवेद तथा स्त्रीवेदके बन्धकोंके १६ कषायोंका नियमसे बन्ध कहा . है, किन्तु पुरुषवेदके बन्धकोंके संज्वलनको छोड़कर शेष १२ कपायोंका स्यात् बन्ध कहा है। इसका कारण यह है कि नपुंसकवेद तथा स्त्रीवेदके बन्धक क्रमशः मिथ्यात्व, सासादन तक होते हैं, वहाँ १६ कषायोंका बन्ध होता है। पुरुषवेदका वन्ध अनिवृत्तिकरणगुणस्थान पर्यन्त होता है. इस कारण पुरुषवेदके बन्धकों के १२ कषायोंके कथंचित् बन्धका वर्णन किया गया है, किन्तु संज्वलन ४ का नियमसे बन्ध कहा है।
६४. हास्यका बन्ध करनेवाला-मिथ्यात्व तथा १२ कपायका स्यात् बन्धक है ।
विशेषार्थ-हास्यका बन्ध अपूर्वकरणगणस्थानपर्यन्त होता है, किन्तु मिथ्यात्व एवं १२ कषायोंका उसके नीचे पर्यन्त बन्ध होता है। इस कारण हास्य के बन्धकके मिथ्यात्वादिका बन्ध विकल्प रूपसे बताया है।
चार संज्वलन, रति, भय, जुगुप्साका नियमसे बन्धक है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीनों वेदों में से एकका बन्धक है, अबन्धक नहीं है। इसी प्रकार रति प्रकृति में जानना चाहिए ।
६५. अरतिका बन्ध करनेवाला-मिथ्यात्व, १२ कपायका स्यात् बन्धक है । ४ संज्वलन, शोक, भय,जुगुप्साका नियमसे बन्धक है। स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीनों वेदों में से एक वेदका बन्धक है , अबन्धक नहीं है । इसी प्रकार शोकमें जानना चाहिए।
६६. भयका बन्ध करनेवाला-मिथ्यात्व, १२ कपायका स्यात् बन्धक है । ४ संज्वलन तथा जुगुप्साका नियमसे बन्धक है । स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है । तीनों वेदोंमें-से
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