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महाबंध
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णियमा बंध० । इत्थि० सिया बं० । पुरिस० सिया बं० । णपुंस० सिया बं० । तिण्णि वेदाणं एकदरं बंध० । अथवा तिष्णं पि अ० । हस्सरदि सिया बं० । अरदिसोग० सिया चं० | दोष्णं युग०. एकतरं बं० अथवा दोष्णं वि अनं ० । एवं तिष्णं संजलणाणं ।
वरिमाणं बं० मायालो० णियमा बंध० । तेरसक० भयदुगुं० सिया बं० । मायं बंधं० लोभं णियमा बंध० । चोद्दसक० भयदु० सिया बं० । लोभसंज० बंधं० पण्णारसक० भयदु० सिया [ बंधगो ] |
६१. इत्थिवेदं बंधतो मिच्छत्तं सिया [ बं०] । सोलसक० भयदु० णियमा बं० । हस्सरदि सिया० । अरदिसोग० सिया० । दोष्णं युगलाणं एकतरं बंध० णव (१) चेव अ० ।
६२. पुरिसवेदं बंधतो मिच्छत्तं बारसक० भयदु० सिया बं० हस्सरदि सिया बं० अरदिसोग० सिया बं० | दोष्णं युगलाणं एकतरं बं० । अथवा दोष्णं पि अबं० । चदुसंज० णियमा बं० ।
बन्धक है, किन्तु शेप मान, माया, लोभरूप संज्वलनका नियमसे बन्धक है । स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है । पुरुषवेदका स्यात् बन्धक है । नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीनों वेदों में से किसी एकका बन्धक है, अथवा तीनोंका भी अबन्धक है।
विशेषार्थ-वेदका बन्ध अनिवृत्तिकरण के प्रथम भाग पर्यन्त है, किन्तु संज्वलन क्रोधका बन्ध अनिवृत्तिकरण के अवेदभाग तक होता है। अतः संज्वलन क्रोध के बन्धकको वेदत्रयका बन्धक भी कहा है ।
हास्य रतिका स्यात् बन्धक है। अरति शोकका स्यात् बन्धक है। दो युगलों में से किसी एक युगलका बन्धक है अथवा दोनों युगलोंका ही अबन्धक है ।
विशेषार्थ-अरति शोकका प्रमत्त गुणस्थानपर्यन्त तथा हास्य रतिका अपूर्वकरण पर्यन्त बन्ध है । अतः संज्वलन क्रोधके बन्धकमें इनके बन्धका स्यात् सद्भाव है, स्यात् नहीं भी है । संज्वलन मान, माया, लोभ में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इतना विशेष है कि संज्जन मानको बाँधनेवाला संज्वलन माया और लोभका नियमसे बन्धक है । तेरह कषाय अर्थात् संज्वलन मान-माया-लोभरहित शेष कषाय, भय तथा जुगुप्साका स्यात् बन्धक है । संज्वलन मायाको बाँधनेवाला संज्वलन लोभको नियमसे बाँधता है । शेष १४ कषाय तथा भय, जुगुप्साका स्यात् बन्धक है। संज्वलन लोभको बाँधनेवाला - १५ कषाय, भय, जुगुप्साका स्यात् बन्धक है ।
६१. स्त्रीवेदको बाँधनेवाला मिध्यात्वका स्यात् बन्धक है, १६ कपाय, भय, जुगुप्साका नियमसे बन्धक है । हास्य रतिका स्यात् बन्धक है। अरति शोकका स्यात् बन्धक है। दोनों युगलों में से एकका बन्धक है? अबन्धक नहीं है ।
विशेषार्थ - स्त्रीवेदकी बन्धव्युच्छित्ति सासादन गुणस्थानके अन्त में होती है, अतः ardhara मिथ्यात्वका बन्ध विकल्प रूपसे कहा है।
६२. पुरुषवेदको बाँधनेवाला - मिध्यात्व, संज्वलन ४ को छोड़कर शेष १२ कषाय, भय, जुगुप्साका स्यात् बन्धक है ।
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