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पयडिबंधाहियारो
११३ ५८. अपञ्चक्खाणं कोधं बंधतो मिच्छत्त० अणंताणु०४ सिया बंधगो। सिया अबंध० । एक्कारसक०-भयदुगु० णियमा बंध० । इत्थिवे. सिया बंध० । पुरिसबं० [वे०] सिया बंध० । णपुंस० सिया बंध० । तिण्णि वेदाणं एक्कतरं बंधगो। ण चेव अबंध० । हस्सरदि सिया बंध० । अरदिसो० सिया बं० । दोण्णि युग० एकतरं बंधगो ण चेव अबंध० । एवं तिण्णि कसायाणं ।
५६. पच्चक्खाणावर० कोधं बंधतो मिच्छ० अट्ठकसा० सिया बं० सिया अबं० । सत्तक०-भयदु० णियमा बंधगो। इथि० सिया बं० । पुरिस० सिया बं० । णपुंस० सिया बं० । तिणि वेदाणं एक्कतरं बं०, ण चेव बंध० [ अबंधगो] । हस्सरदि सिया बंध० । अरदिसोगाणं सिया बंधगो । दोणं युगलाणं एकतरं बंध०, ण चेव अबंध० । एवं तिणि कसायाणं ।
६०. कोधसंज. बंध० मिच्छ० बारसक० भयदुगुं० सिया बंध० तिणि संज०
५८. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका बन्ध करनेवाला मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ का स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है।
विशेषार्थ-अप्रत्याख्यानावरणका बन्ध चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त होता है और मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी ४ का क्रमशः मिथ्यात्व, सासादन गुणस्थान तक बन्ध होता है; इस कारण अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धके साथ मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकी अनिवार्यता नहीं है।
अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा अप्रत्याख्यानावरण क्रोधको छोड़कर शेष ग्यारह कषाय, भय, जुगुप्साका नियमसे बन्धक है । स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है। पुरुषवेदका स्यात् बन्धक है। नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीनों वेदोंमें-से अन्यतरका है; अबन्धक नहीं है। हास्य, रतिका स्यात् बन्धक है । अरति, शोकका स्यात् बन्धक है। दो युगलोंमें-से अन्यतरका बन्धक है, अबन्धक नहीं है।
विशेषार्थ-हास्य-शोक, रति-अरति ये परस्पर विरोधी प्रकृतियाँ हैं । अतः जब हास्यरतिका बन्ध होगा, तब शोक-अरतिका बन्ध नहीं होगा। ___अप्रत्याख्यानाधरण मान, माया, लोभमें अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के समान जानना चाहिए।
५१. प्रत्याख्यानावरण क्रोधका बन्ध करनेवाला-मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यानावरणरूप कषायाष्टकका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। शेष प्रत्याख्यानावरण ३ तथा संज्वलन ४ इस प्रकार ७ कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्धक है । स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है । पुरुषवेद का स्यात् बन्धक है । नपुंसकवेदका स्यात् बन्धक है। तीन वेदों मेंसे किसी एकका बन्धक है, अबन्धक नहीं है । हास्य-रतिका स्यात् बन्धक है। अरति-शोकका स्यात् बन्धक है । दो युगलोंमें-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण मान, माया तथा लोभका भी वर्णन जानना चाहिए ।
६०. संज्वलन क्रोधका बन्ध करनेवाला-मिथ्यात्व, १२ कषाय, भय, जुगुप्साका स्यात्
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