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महाबंधे थिरादि-तिणि युग० जह० एग०, उक्क० अंतो० । कम्मइ० का०-पंचणा० णवदंस० मिच्छ० सोलस० तिण्णिवे०-भयदु०तिणि ग०-पंचजा०-चदुसरी०. छस्संठा० दोअंगो० छस्संघ-वण्ण०४ तिणि आणु०-अगुरु०४ दोविहा०-तसथावरादिचदुयुगलसुभादि-तिण्णियुग-णिमि०-तित्थय० णीचुच्चा०-पंचंत० णत्थि अंत० । सादासा० चदुणोक० आदावुज्जो०-थिराथिर-सुभासुभ० जस० अज्जस० जहण्णु० एगस० ।
३८. इत्थिवे०-पंचणा० छदसणा० चदुसंज० भयदुगु. तेजाक० वण्ण०४ अगु० उपघा०-णिमि० तित्थय० पंचंत० णत्थि० अंतः। थीणगिद्धि०३ मिच्छ० अणंताण०४ जह० अंतो०, उक्क ०पणवण्णं पलिदो० देसू० । सादासा० पंचणोक० तीन युगलका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। कार्मण-काययोगियों में-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कपाय, ३ वेद, भय, जुगुप्सा,'३ गति (नरकगति छोड़कर ), ५ जाति, ४ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, वर्ण ४,३ आनुपूर्वी, अगरुलघ ४, दो विहायोगति, सस्थावरादि ४ युगल, शुभादि ३ युगल, निर्माण, तीर्थकर, नीच-उच्च गोत्र और पाँच अन्तरायोंका अन्तर नहीं है। साता-असाता वेदनीय, ४ नोकषाय, आताप, उद्योत, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यशःकीर्ति, अयशःकीर्तिका जघन्य उत्कृष्ट अन्तर एक समय है।
विशेषार्थ- कार्मणकाययोगका उत्कृष्ट काल उत्कृष्टसे तीन समय प्रमाण है। तीन समयके बीच में अन्तरका काल एक समयसे अधिक अथवा न्यून न होगा। एक समयं बन्धका होगा, एक समय अबन्धका और एक समय पुनः बन्धका। इस कारण जघन्य-उत्कृष्ट अन्तर एक समय प्रमाण कहा है।
विशेषार्थ-खुद्दा बन्धमें कार्मण काययोगियोंके विषयमें ये सूत्र हैं -कम्मइयकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उकस्सेण अंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेजासंखेजात्रो अोसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ (७७, ७८, ७६,) कार्मणकाययोगी जीवोंका कितने काल अन्तर होता है ? जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण काल अन्तर है, उत्कृष्टसे अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल होता है। इस संबन्धमें धवलाटीकाकारने इस प्रकार खुलासा किया है - तीन विग्रह करके मदभव धारण करनेवाले जीवों में उत्पन्न हो.पुनः विग्रह करके निकलनेवाले जीवके तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र कार्मण-काययोगका अन्तर प्राप्त होता है।
कार्मण-काययोगसे औदारिक मिश्र अथवा वैक्रियिकमिश्र काययोगमें जाकर असंख्यात-संख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीप्रमाण अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र काल तक रहकर पुनः विग्रहगतिको प्राप्त हुए जीवके कार्मण - काययोगका सूत्रोक्त अन्तर काल पाया जाता है । ( खु० भा० २ पृ० २१२-२१३)
३८. स्त्रीवेदमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर और ५ अन्तरायोंका अन्तर नहीं है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट कुछ कम ५५ पल्य है।
१. गो० क०,गा० ११६, ११९ ।
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