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________________ पयडिबंधाहियारो १६. एइंदिएसु-पंचणा ० णवदंसणा ० मिच्छ ० सोलस ० भयदुगु० ओरालिय० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमिणं पंचंतरा० जह० खुद्धा० । उक्क ० अणंतकालम० । बादरे० अंगुल० असं० । सुहुमे असंखेज्जा लोगा। बादर-एइंदिय-पज्जत्ता० जह० अंतो० । उक्क० संखेज्जवस्ससहस्सा० । सुहुम-एइंदि० पज्जत्त जहण्णु० अंतो० । तिरिक्खगदितियं जह० एय० । उक० असंखेज्जा लोगा। एवं सुहुम बादरे अंगुलस्स असंखे०। पज्जत्ते संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । सुहुम-पज्ज० जह० एग० उक्क० अंतो। सेसाणं सादादीणं जह० एय० । उक्क ० अंतो० । दो आयु० ओघं । एवं सब्ब-एइदियाणं णेदव्वं । विगलिंदिया०-पंचणा०णवदंसणा०मिच्छत्त०सोलसक०भयदुगु ओरालियतेजाक०-वण्ण०४ अगु० उप० णिमिणं पंचंतरा० जह० खुद्धाभ० पज्जते० अंतो०, उक्क० संखेजाणि वस्ससहस्साणि । दो आयु ओघ । सेसाणं सा [दा] दीणं जह० एयस० । उक्क० अंतो० । १६. एकेन्द्रियोंमें -५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजस- कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, पाँच अन्तरायका बन्ध. काल क्षुद्रभव प्रमाण जघन्यसे है तथा उत्कृष्ट अनन्तकाल असंख्यात पुद्गल परावर्तन जानना चाहिए । बादर एकेन्द्रियमें उत्कृष्ट बन्धकाल अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है तथा सूक्ष्ममें असंख्यात लोक प्रमाण है। विशेष - यहाँ 'अंगुलका असंख्यातवाँ भाग' यह क्षेत्रकी मर्यादाका द्योतक शब्द, काल के लिए प्रयुक्त हुआ है । इसका तात्पर्य यह है कि आकाशके उक्त प्रमाण क्षेत्रमें जितने प्रदेश आवें, उतनी संख्या-प्रमाण समय-समूहात्मक रूपकालको ग्रहण करना चाहिए । 'बादर-एकेन्द्रिय-पर्याप्तकमें जघन्य बन्धकाल अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट बन्धकाल संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है । सूक्ष्म-एकेन्द्रिय-पर्याप्तकमें जघन्य बन्धकाल तथा उत्कृष्ट बन्धकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । तिर्यचगतित्रिकका बन्धकाल जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से असंख्यात लोक प्रमाण है । इस प्रकार सूक्ष्मोंमें जानना चाहिए । बादर एकेन्द्रियों में अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाणकाल है । किन्तु इनके पर्याप्तकों में संख्यात हजार वर्ष प्रमाण बन्धकाल है। सूक्ष्मपर्याप्तकोंमें जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्महत है। शेष साता आदि प्रकतियोंका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है। मनुष्य तथा तिर्यंचायुका बन्धकाल ओघवत् जानना चाहिए। इस प्रकार सम्पूर्ण एकेन्द्रियोंमें जानना चाहिए। विकलेन्द्रियोंमें-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजस-कार्मण' शरीर, वर्ण४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका जघन्य बन्धकाल क्षुद्रभव प्रमाण है । किन्तु पर्याप्तकोंमें अन्तर्मुहूर्त प्रमाण जघन्य बन्धकाल है । उत्कृष्ट बन्धकाल संख्यात १. "इंदियाणुवादेण एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अणंतकालमनखेज्जपोग्गलपरियढें ।'-पटखं०, का०,१०७-१०६ । २. "बादरेंदियपज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ।" -षट्खं०,का०, ११३-११५ । ३. "सुहुमेंदियपज्जत्ता "एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं,"-षट्ख०,का०,१२२-१०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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