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________________ पयडिबंधाहियारो थिरादिदोयु० दूभग-दुस्स०-अणादे०-जस०-अज्जस०-णीचागो. जहण्णे० एग० । उक्क० अंतो० । पुरिस० देवग०४ समच० पसत्थ० सुभग० सुस्सर० आदेज्ज. उच्चागो० जह• एगस० । उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरे० । मणसिणीसु देसू० । पंचिंदिय० परघादु० तस०४ तिरिक्खोघं । आहार०२ जह० एग० । उक० अंतो० । तित्थ० जह० एग० । उक्क० पुवकोडिदेसू०।। १८. देवेसु-पंचणा० छदंसणा०बारसक०भय दुगुं० ओरालिय०तेजाक०वण्ण०४ अगु०४ बादर-पज्जत्त-पतेय. णिमि० पंचंत० जह. दसवस्ससहस्सा० । उक० तेतीसं सा० । थीणगिद्धितिग० मिच्छ० अणंताणबं०४ जह० एग० । [णवरि] मिच्छ० अंतो० । उक्क० एकत्तीसं सा० । सादासा. छण्णोक० तिरिक्ख० एइंदि० स्थिरादि दो युगल, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, यश कीर्ति, अयशकीर्ति तथा नीचगोत्रका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पुरुषवेद, देवगति ४, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा उच्चगोत्रका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट साधिक तीन पल्य प्रमाण है। विशेष यह है कि मनुष्यनी में देशोन तीन पल्य है। पंचेन्द्रिय जाति, परघात, उच्छ्वास, त्रस ४ का बन्धकाल तिर्यञ्चोंके ओघवत् है। आहारकद्विकका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। तीर्थंकरका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि है। १८. देवोमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक, तैजस, कार्मण) शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण तथा पञ्च अन्तरायोंका जघन्य बन्धकाल दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेतीस सागर प्रमाण है। विशेषार्थ - देवोंकी जघन्य तथा उत्कृष्ट आयुकी अपेक्षा यह वर्णन हुआ है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ का जघन्य बन्धकाल एक समय है। (इतना विशेष है कि) मिथ्यात्वका जघन्य बन्धकाल अन्तर्मुहूर्त है, किन्तु सबका उत्कृष्ट बन्धकाल ३१ सागर प्रमाण है। विशेष- कोई मिथ्यात्वी द्रव्यलिंगी मरकर ३१ सागरकी आयुवाले ग्रैवेयक वासी देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहाँ उसने जीवन-भर मिथ्यात्वादिका बन्ध किया। इस अपेक्षा ३१ १. "असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुरा, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ।"-षट्खं०,का०,७९-८१ । "मणुस-मणुसपजत्तएसु सादिरेयाणि तिण्णि पलिदोवमाणि अण्णत्थ देसूणाणि ।'"-ध० टी०,का०, पृ० ३७७ । पूर्वकोटि आयु के त्रिभागमें मनुष्यायुको बांधनेवाले मनुष्यने अन्तर्मुहूर्तमें सम्यक्त्व प्राप्त किया तथा सम्यक्त्वसहित भोगभूमिमें तीन पल्य बिताये और मरकर देव हआ। इस प्रकार साधिक तीन पल्य है। कुछ कम तीन पल्य प्रमाणकाल मनुष्यनियोंमें है। कोई मिथ्यात्वी मनुष्य भोगभूमिमें तीन पल्यको स्थितिवाला मनुष्य हआ। ९ माह गर्भ में बिताये, पश्चात् ४९ दिनमें सम्यक्त्व लाभ किया और सम्यक्त्वयुक्त शेष तीन पल्य पूर्ण कर मरा और देव हुआ। इस प्रकार ९ माह ४९ दिन कम तीन पल्य प्रमाणकाल हुआ। ध० टी०,का०,पृ० ३७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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