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पडबंधाहियारो
[ कालपरूवणा ]
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.१३. 'जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं साग० दे० । तित्थ० जह० चदुरासीदिवाससहस्साणि, उक्क० तिष्णि साग० सादिरे० । पढमाए याव छट्ठत्ति पढमदंडबंधकालो जह० दसवास सहसाणि सागरोपम - तिण्णि-सत्त- दस- सत्ता रस- सागरोप० सादिरे ० । उक्क० अष्पष्पणो हिदी कादव्वो ( दव्वा ) | साद[द] डगे तिरिक्खगदितिगं पवि जह० एयस० उक० अंतो० | थीण गिडिओ णिरयोघो । णवरि अपणो हिदी भा(भ) णिदव्वा । एवं मिच्छत्त - दंडओ | पुरिसवेददंडओ अप्पप्पणो हिदी० दे० | दो आयु० ओघं । तित्थयर० पढमाए जह० चदुरासीदि वस्स- सहस्साणि, उक्क० सागरो० देसू० । बिदियाए जह० सागरो० सादिरे० । उक्क० तिष्णि सागरो ० देसू० | तदियाए जह० तिष्णि साग० सादिरे० । उक्क० तिष्णि साग० सादिरे० । सत्तमाए रइ ओघो । णवरि दंसणतियं मिच्छत्तं अर्णताणुबंधि०४ तिरिक्खपगदितियं च जह० अंतो० | मणुस ० मणुसाणुपुव्वि ० उच्चागो० जह० अंतो० । तित्थयर० णत्थि ।
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क्षायिक सम्यक्त्व में चौथेसे चौदहवें पर्यन्त गुणस्थान होते हैं । यहाँ भी ७९ का बन्ध होता है।
संज्ञी मार्गणा - संज्ञी जीवके १ से १२ पर्यन्त गुणस्थान कहे गये हैं । यहाँ १२० का बन्ध होता है ।
असंज्ञीके प्रथम तथा द्वितीय गुणस्थान होते हैं । यहाँ तीर्थंकर तथा आहारकद्विकके विना १२० - ३ = ११७ का बन्ध कहा गया है ।
आहार मार्गणा - यहाँ १ से १३ गुणस्थान होते हैं । १२० प्रकृतिका बन्ध होता है । अनाहारकों के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, तेरहवें गुणस्थान कहे गये हैं । यहाँ ४ आयु, आहारकयुगल, नरकद्विकके बिना १२० - ८ - ११२ का बन्ध कहा है ।
कालप्ररूपणा
[ ताड़पत्र नं० २८ नष्ट हो जाने के कारण इस प्ररूपणाका प्रारम्भिक अंश भी विनष्ट हो गया। प्रकरणको देखते हुए ज्ञात होता है कि यहाँ आदेशकी अपेक्षा नरकगतिका वर्णन चल रहा है और ओघका वर्णन नष्ट हो गया है ]
विशेष - यहाँ एक जीवकी अपेक्षा वर्णन किया गया है ।
१३. नरकगतिमें जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से देशोन तेतीस सागरोपम है। एक जीवकी अपेक्षा तीर्थंकर प्रकृतिका जघन्य बन्धकाल ८४ हजार वर्ष, तथा उत्कृष्ट साधिक तीन सागर प्रमाण है । प्रथम नरकसे छठे नरक पर्यन्त प्रथम दण्डकका बन्धकाल जघन्य से दशहजार वर्ष, एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दस सागर, सत्रह सागर से कुछ अधिक है तथा उत्कृष्ट अपने-अपने नरककी स्थिति प्रमाण जानना चाहिए। अर्थात् क्रमशः एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दस सागर, सत्रह सागर तथा बाईस सागर प्रमाण है । साता दण्डकमें तिर्यंचगतित्रिकमें प्रविष्ट जीवका बन्धकाल जघन्यसे एक समय उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । स्त्यानगृद्धि दण्डकका बन्धकाल नरक गतिकी ओघ रचनाके समान है। विशेष यह है कि यहाँ अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए ।
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