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पयडिबंधाहियारो ११. आदेसेण णिरएसु पंचणाणा०-छदंसणा-सादासादं बारसकसा० सत्तणोक० मणुसग०-पंचिंदि०-ओरालियतेजाक०-समचदु०-ओरालिय० अंगोवंगवजरिस०वण्ण०४ मणुसगदिपा०-अगुरुगलहु० ४ पसत्थवि० तम०४ थिराथिर-सुभासभ-सुभगसुस्सर-आदेज्ज-जसगित्ति-अजसगित्ति-णिमिणं उच्चागोदं पंचअंत० को बं०१ सव्वे बंधा, अबंधा णत्थि । थीणगिद्धिआदि-पणुवीसं ओघं । मिच्छत्त-णपुंसकवे०-हुंडसंठाणं असंपत्तसे० को बं० १ मिच्छादि० बंधा । एदे बंधा अवसेसा अबं० । मणुसायु ओघं । तित्थयरं को बं० ? असंजदस० । एदे [बंधा] अवसे० अबंधा । एवं पढम-विदिय-तदियासु । चउत्थि-पंचमि-छट्ठीसु एवं चेव, णवरि तित्थगरं णत्थि । सत्तमाए छट्ठिभंगो, णवरि मणुसायु णत्थि । मणुसग०-मणुसग०पा०-उच्चा० को बं० १ सम्मामिच्छा०असंज० । एदे बं० । अवसे० [अबंधा] । तिरिक्खायु० को बं० ? मिच्छादिट्ठी बंधा । एदे [बंधा] अवसे० अबंधा।
११. आदेशसे, नारकियां में-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, साता असाता वेदनीय, अनन्तानुबन्धी ४ को छोड़कर शेष १२ कषाय, (स्त्रीवेद, नपुंसकवेद बिना ) ७ नोकषाय, मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक तैजस-कार्माण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, औदारिक अंगोपांग , वर्ण ४, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, वज्रवृषभसंहनन, स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, अयश कीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र तथा ५ अन्तरायका कौन बन्धक है ? सर्व बन्धक हैं। अबन्धक नहीं हैं। स्त्यानगृद्धि आदि २५ प्रकृतियोंका
ओघवत् जानना चाहिए अर्थात् सासादन गुणस्थान पर्यन्त बन्धक हैं। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डक संस्थान, असम्प्राप्तामृपाटिका संहननका कौन बन्धक है ? मिथ्यादृष्टि बन्धक है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं। मनुष्यायुके बन्धकका ओघवत् जानना चाहिए, अर्थात् अविरत गुणस्थान पर्यन्त बन्धक हैं। तीर्थकरप्रकृतिका कौन बन्धक है ? असंयत सम्यग्दृष्टि बन्धक है । ये बन्धक हैं:शेष अबन्धक हैं। प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पृथ्वी पर्यन्त ऐसा ही जानना चाहिए । चौथी, पाँचवी तथा छठी पृथ्वियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष, यहाँ तीर्थंकर प्रकृति नहीं है। तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध तीसरी पृथ्वी पर्यन्त होता है।
__ सातवीं पृथ्वीमें-छठी पृथ्वीके समान भंग है। विशेष, यहाँ मनुष्यायु नहीं है। मनुष्यगति, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी तथा उच्चगोत्रका कौन बन्धक है ? सम्यगमिथ्यात्वी तथा असंयतसम्यग्दृष्टि जीव बन्धक हैं । ये बन्धक हैं। शेष अबन्धक हैं । तिर्यञ्चायुका कौन बन्धक है ? मिथ्यादृष्टि बन्धक है । ये बन्धक हैं। शेष अबन्धक हैं।
१. ."विदियगुणे अणथोणति दुभगतिसंठाण संहदिचउवकं । दुग्गमणित्थी-णीचं तिरियदुगुज्जोव तिरियाऊ ॥"-गो० क०, गा० ९६ । २. "मिस्साविरदे उच्च मणुवदुगं सत्तमे हवे बंधो ॥"
-गो० क०,१०७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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