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महाबंधे पञ्चक्खाणावर०४ को बंधो, को अब ? मिच्छादिद्वि याव संजदासजदा बंधा । एदेव अवसेसा अबंधा। पुरिसवे०कोध० संज० को ब० को अब ? मिच्छादिट्टि याव अणियट्टिउवसमा खवा बंधा। अणियट्टिवादरद्धाए संखेज्जामागं गंतूण वोच्छिज्जदि । एदे बंधा अवसेसा अबंधा। एवं माणमायसंज० । णवरि सेसे सेसे संखेज्जाभागं गंतूण बंधा । एदे 4 अवसेसा अब । एवं लोभसंज० । णवरि अणियट्टिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो० । एदे ब० अवसेसा अब । हस्सरदिभयदुगुं० को बंधो ? मिच्छादिट्टि याव अपुवकरणउवसमा खमा ( खवा ) बंधा। अपुरकरणद्धाए चरिमसमयं गंतू० बंधो वो० । एदे च अवसेसा अब । मणुसायु० को बंध० को० [अबंधको] ? मिच्छादि०-सासणसम्मादि०असंजद० बंधा। एदे ब० अवसेसा अबंधा । देवा० मिच्छादि० सासण. असंजदसं० संजदासंजद-पमत्तसंजद-अप्पमत्तसंजद० । अप्पमत्तसंजदद्धाए संखेजदिभागं [गंतूण] बधो० [वोच्छिादि]। एदे बंधा० अवसेसा [ अबंधा] । देवगदि०
प्रत्याख्यानावरण ४ का कौन बन्धक, अबन्धक है ? मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयतपर्यन्त बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं।
पुरुषवेद, संज्वलन क्रोधका कौन बन्धक, अबन्धक है ? मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरणमें उपशमक क्षपक पर्यन्त बन्धक हैं, अनिवृत्तिबादरके कालके संख्यात भाग बीतनेपर व्युच्छित्ति होती है । ये बन्धक हैं; शेष अबन्धक हैं।
मान-माया-संज्वलनमें भी यही बात जाननी चाहिए। विशेष यह है कि शेष शेषके संख्यात भाग बीतनेपर्यन्त बन्ध होता है । ये बन्धक हैं; शेष अबन्धक हैं।
इसी प्रकार संज्वलन लोभमें है। विशेष-अनिवृत्तिकरणके कालके चरम समयपर्यन्त बन्ध होता है । ये बन्धक हैं; शेष अबन्धक हैं।
हास्य, रति, भय, जुगुप्साका कौन बन्धक है ? मिथ्यात्वसे लेकर अपूर्वकरणके उपशमक तथा क्षपकपर्यन्त बन्धक हैं। अपूर्वकरणके चरम समयके बीतनेपर बन्धक होती है । ये बन्धक हैं; शेष अबन्धक हैं ।
मनुष्य आयुका कौन बन्धक है ? कौन अबन्धक है ? मिथ्यादृष्टि, सासादन तथा असंयतसम्यक्त्वी बन्धक हैं। ये बन्धक है, शेष अबन्धक हैं।
देवायुका कौन बन्धक, अबन्धक है ? मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयतसम्यक्त्वी, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं। अप्रमत्तसंयतके कालके संख्यातवें भाग बीतनेपर बन्धकी व्युच्छित्ति होती है । ये बन्धक हैं; शेष अबन्धक हैं।
देवगति, पंचेन्द्रिय, वैक्रियिकशरीर, तैजस, कार्मण, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक आंगोपांग, वर्ण ४,. देवानुपूर्वी, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, [त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक,] स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माणका कौन बन्धक, अबन्धक है ? मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण गुणस्थानके उपशमक क्षपकपर्यन्त बन्धक हैं। अपूर्वकरणके संख्यातवें भाग बीतनेपर बन्धकी व्युच्छित्ति होती है। ये बन्धक हैं: शेप अबन्धक हैं।
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