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________________ पयडिबंधाहियारो ३५ 1 णोसव्वधो । एवं मोहणीय णामाणं । वेयणी० - आयु-गोदा० किं सव्वबंधो णोसव्वबंध ? vieosबंध । एवं याव अणाहारगति, णवरि अणुदिसा० याव सव्वदृत्ति दंसणा ० - गोसव्वबंधो । एदेण बीजेण णेदव्वं । एवं उक्करसंबंधो अणुकरसंबंधोपि दव्वं । यो सो जहण्णबंधो अजहण्णबंधो णाम तस्स इमो दु० णिद्देसो | ओघे० आदेसे ० | ओघे० णाणंतराइगस्स पंचविहस्स किं जहण्णबंधो, अजहण्णबंधो ? अजहण्णबंधो। दंसणावरणीय मोहणीय णामाणं वि किं जहण्णबंधो, अजहण्णबंधो ? जहण्णबंधो वा अजहण्णबंधो वा । वेदणी० आयु-गोदा० किं जह० अजह० १ जहण्णबंधो । एवं याव आण (अणा)हारग त्ति दव्वं । यो सो 'सादिय-बंधो अणादिय बंधो ४, तस्स शेष चार भेदोंका नियमसे बन्ध होता है । सर्व भेदोंका बन्ध होने के कारण इनका सर्वबन्ध कहा गया है । प्रश्न- दर्शनावरण कर्मका सर्वबन्ध है या नोसर्वबन्ध है ? उत्तर - सम्पूर्ण प्रकृतियोंके बन्ध करनेवालेके सर्वबन्ध होता है । सर्व प्रकृतियों में से न्यून प्रकृतियोंके बन्ध करनेवालेके नोसर्वबन्ध है । मोहनीय तथा नाम कर्म में दर्शनावरण के समान जानना चाहिए अर्थात् सर्व प्रकृतियों के बन्ध करनेवालेके सर्वबन्ध और कुछ न्यून प्रकृतियों के बन्ध करनेवालेके नोसर्वबन्ध होता है । वेदनीय, गोत्र तथा आयुकर्म में क्या सर्वबन्ध है, अथवा नोसर्वबन्ध है ? नोसर्वबन्ध है । विशेषार्थ - साता, असाता वेदनीय, उच्च, नीच गोत्र इन युगलों में से किसी एकका बन्ध होगा तथा अन्यका अबन्ध होगा । इसी प्रकार आयुचतुष्टय में से अन्यतमका बन्ध होगा, शेषका अबन्ध होगा । इसलिए वेदनीय, गोत्र तथा आयुका नोसर्वबन्ध कहा है । आदेश से यह क्रम अनाहारक पर्यन्त जानना चाहिए। विशेषता यह है कि अनुदिशसे सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त देवोंमें दर्शनावरण तथा मोहनीयका नोसर्वबन्ध होता है । इस कथनको आगे भी अन्य मार्गणाओं में सर्व नोसर्वबन्धका बीजभूत समझना चाहिए । [ उत्कृष्टबन्ध-अनुत्कृष्टबन्धप्ररूपणा ] इसी प्रकार उत्कृष्टबन्ध तथा अनुत्कृष्टबन्ध में भी जानना चाहिए | विशेष - सर्वबन्ध नोसर्वबन्धमें ओघ तथा आदेशसे जैसा वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए । [ जघन्यबन्ध - अजघन्यबन्धप्ररूपणा ] जो जघन्यबन्ध तथा अजघन्यबन्ध है, उसका ओघ तथा आदेश से दो प्रकार से निर्देश करते हैं । ५ ज्ञानावरण, ५ अन्तरायका क्या जघन्यबन्ध है या अजघन्यबन्ध है ? अजघन्यबन्ध है । दर्शनावरण, मोहनीय तथा नामकर्मका क्या जघन्यबन्ध है. या अजघन्यबन्ध ? जघन्यबन्ध है तथा अजघन्यबन्ध है । वेदनीय, आयु तथा गोत्रका क्या जघन्यबन्ध है या अजघन्यबन्ध ? जघन्यबन्ध है | अनाहारक मार्गणापर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए । से सगो १. "सादि अणादी धुव अधुवो य बंधो दु कम्मछक्कस्स । तदियो सादिय सेठी अणादि धुव आऊ ।" - गो० कर्म०, गा० १२२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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