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विषय-सूची
विषय
मङ्गलाचरण मूल प्रकृतिसमुत्कीर्तन आठ प्रकार के कर्म ज्ञानावरण कर्म की पाँच प्रकृतियाँ आभिनिबोधिक ज्ञानावरण-प्ररूपणा श्रुतज्ञानावरण-प्ररूपणा अवधिज्ञानावरण-प्ररूपणा भवप्रत्यय और क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान के तीन भेद अवधिज्ञान सम्बन्धी १६ काण्डकों
का निरूपण परमावधि का काल
परमावधि का क्षेत्र २. मनःपर्ययज्ञानावरण-प्ररूपणा
दो प्रकार की प्ररूपणा ...क्षेत्र तथा काल की अपेक्षा प्ररूपणा ३. केवलज्ञानावरण-प्ररूपणा
त्रैकालिक तथा त्रिलोक विषयक ज्ञान ३२
सर्वज्ञता ४. दर्शनावरणादि कर्ग-प्ररूपणा
दर्शनावरणादि कर्म-प्रकृतियाँ कुल १४८ कर्म-प्रकृतियाँ सर्वबन्धनोसर्वबन्ध-प्ररूपणा सर्वबन्ध तथा नोसर्वबन्ध उत्कृष्टबन्ध-अनुत्कृष्टबन्ध-प्ररूपणा जघन्यबन्ध-अजघन्यबन्ध-प्ररूपणा ३५ सादि-अनादि-धूव-अधुवबन्ध-प्ररूपणा ओघ से सादिबन्ध आयुबन्ध के विषय में नियम ओघ तथा आदेश का अर्थ . ३७ ध्रुव तथा अध्रुवबन्ध
३७
७. बन्धस्वामित्वविचय-प्ररूपणा
ओघ से चौदह गुणस्थानों में
प्रकृतिबन्ध की व्युच्छित्ति तीर्थंकर नामगोत्रकर्म का बन्ध आदेश से तीसरे नरक तक
तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध तिर्यंचों में बन्धक
मिथ्यात्व गुणस्थान के बन्धक ८. काल-प्ररूपणा
एक जीव की अपेक्षा वर्णन तिर्यंचों में बन्धकाल देवों में जघन्य तथा उत्कृष्ट आयु एकेन्द्रियों में जघन्य तथा उत्कृष्ट
बन्धकाल पंचेन्द्रियों में जघन्य तथा उत्कृष्ट
बन्धकाल स्त्रीवेद में जघन्य तथा उत्कृष्ट
बन्धकाल उपशम श्रेणी की अपेक्षा बन्धकाल अभव्यसिद्धिक जीव की अपेक्षा
बन्धकाल तिर्यंचगति त्रिक का ओघ से
बन्धकाल मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी
का बन्धकाल मनुष्यगति पंचक का जघन्य
तथा उत्कृष्ट बन्धकाल संयमासंयम का स्थितिकाल लेश्याओं में बन्धकाल सम्यक्त्व में बन्धकाल
७६ आहारकों-अनाहारकों में बन्धकाल ७८ अन्तरानुगम-प्ररूपणा एक जीव की अपेक्षा ओघ से वर्णन ७६
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