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________________ सुलसाख्यानकम् दक्खालइ तो गिहचेइयाइं, 'वंदेइ सो वि विहिपुव्वयाई, उवविसइ दिन्नपवरासणम्मि, अइहरसिं निव्भर नियमणम्मि, सो जंपर 'साविऍ ! चेहयाई, वंदाविय सासय-ऽसासयाई', तो लायवि सिरु कर भूमिवट्टि, सा वंदइ मणि कयगरुयतुट्टि, सो पुण विपयंपइ विहसियंगु, जिणसासणि निञ्चल अंतरंगु, ' तुहुं धन्न सपुन्न कयत्थ एक्क, तुहु जम्मु सहलु तुह पणयसक्क, जिं थ - तिरिक्ख- सुरा - ऽसुराण, मज्झट्ठिउ तेयसुभासुराण, तु पुच्छ व जिणंदु वीरु, मारारिवीरदलणेक्कवीरु', तं सुणवि सुलस पुलइयसरीर, संथुणइ 'जिणेसरु जयहि वीर !, मिच्छत्तमेहनासणसमीर !, जय मोहमलबलमलणधीर !, जय पणयसुरा - सुरइंद-चंद !, चलणंगुलिचालियगिरिवरिंद !, जय केवलकलियभवस्सरूव !, जय वीर ! तिलोयऽब्भहियरुव !', इय थुणवि सुलस भूलुलियसीस !, पुणु पुणु जिणु वंदइ गयकिलेस, तो विपपिलस तेण, सविसेसपरिक्खवियक्खणेण, ह 'किर भाई पुरवरस्स, दारेसु धम्मु अक्खहि जणस्स, कोडेण वि सुंदरि ! ताण पासि, किं कारणु जं किर नवि गया सि ?', सा भइ 'सुहय ! किर कांइ इम्व, उल्लवहि अईवअयाणु जेम्व ?, जणु वीरूनविणु कह व तेसु, मणु मज्झु घुलइ अघडंत एसु, जओ भणियं 1 जो एरावयगंडयल गलियमयरंदपरिमलग्घविओ । सो विहसियं पि न रमइ पिचुमंदं महुयरजुवाणो ॥ १ भरुयच्छकच्छवच्छुच्छलंतमयरंदगुंडियंगस्स । भमरस्स करीरवणे मणयं पि मणं न वीसमइ ॥ २ जो माणसम्मि वसिओ वियसियसयवत्त मासलाऽऽमोए । सो किं फुलपलासे सविलासं छप्पओ छिवइ ? ॥ ३ जो कयसीयलतीरे नीरे रेवाऍ मज्जइ जहिच्छं । सो किं इयरे वियरे गयराओ देइ दिट्ठि पि ॥ ४ जो नासियधवगंगं (?) गंगं धवलुज्जलं जलं लिहइ । गयसोहं सो हंसो किं सेसनईपयं पियइ ? ॥ ५ जो पोढपुरंधिरए रओ कामं पकामकामम्मि । सो* किं मोहियमारो वारयकामे मणं कुणइ ? || ६ जो तुन्तनए नए नओ होइ वसइ वरवच्छे । सो नीलगलो विगलो किं विगयतरुं मरुं सरइ ? ॥ ७ जो घणलयसामलए मलए मयरंदवासिए वसिओ । सारंगो सारंगो सो किं अवरे घरे रमइ ! ॥ ८ इय वीर! धीर ! माणहण ! तुज्झ पयपंकथं नयं जेण । सो हरि-हराण किं सुहसमूहमहणे कमे नमइ ? ॥ ९ इय जो जिनिंदनिरुपमवयणामयपाणपियणदुल्ललिओ । सो सेसकुनयमयकंजिएसु न य नेव्वुई कुणइ ॥ १० वीर जिणेसर, दुहतमणेसर, जेहि पणउ पयकमलु तुह । हरि-हमासु, कामिय- माइसु, सुवियक्खण! पणमंतु कह ? ॥' १६ 1 [ १७ ] अहसुल पसंसवि महुरवाणि, आपुच्छवि अम्मडु गयउ ठाणि, इय सुलस सुनिश्चल दंसणम्मि, कमसो य पत्त पच्छिमवयम्मि, 1 A B वंदेहि | 2 C D ° हरसिहं नि° । 30 D कोड्डेण । 4CD सो किं मो इयमोरे खोरे कामे । 5 E द्रुद्द° । Jain Education International ५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001387
Book TitleMulshuddhiprakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size21 MB
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