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पद-रचना : क्रिया-प्रकरण
७१ उत्तर कालमें कुछ कर्मणि भूत कृदन्त भी मूल धातुके रूपमें प्रयुक्त होने लगे, जैसे-मुक्क(मुक्त), लग्ग(लग्न), मुक्कइ, लग्गइ ।
इन परिवर्तनों के कारण प्राकृत भाषाओं के धातुओं को निम्न प्रकार से विविध स्वरान्तों में विभाजित किया जाता हैं : (१) (२) (३) (४) अ आ ओ
ए(अय), ('अ'कारान्त), एवं(अन्य । स्वरान्त) भव, हव उट्ठा करो कथे, कहे वंदे दे(दा) गच्छ ठा सक्को पाले(पालय्) भजे उढे(उट्ठा) इच्छ जाना भो, हो आणवे गच्छे जे(जि) पुच्छ पापुणा पापुणो (आज्ञापय्) इच्छे ने(नी) पच जिना सक्कुणो कारे(कारय्) छिन्दे करे(कृ) लभ, लह तनो करावे(कारापय्) पुच्छे हन, हण
पचे नच्च, णच्च
गच्छ
छिन्द
कर
गण्ह, गह
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