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________________ प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण म्ह : म्हि (अस्मि), म्ह (स्मः) ल्ह : ल्हसिअ (स्नस्त), ल्हसुण (लशुन), ल्हिक्क (नि+ली) व्यंजन+र् : द्रह (हृद), प्रिय, व्रद (वृन्द) (ब) मध्यवर्ती संयुक्त व्यंजन (१) प्राकृत भाषा में एक साथ दो से अधिक व्यंजन संयुक्त रूप में नहीं आते हैं : सत्त (सत्त्व), सामत्थ (सामर्थ्य), मन्त ( मन्त्र), सत्थ (शस्त्र), रन्ध ( रन्ध्र), जोण्हा (ज्योत्स्ना) समीकरण : अलग अलग वर्ग के दो व्यंजन प्रायः एक साथ नहीं रहते हैं । उनमें से एक को दूसरे के समान बना दिया जाता है । इस प्रक्रिया को समीकरण कहा जाता है । समीकरण का सामान्य नियम यह है कि संयुक्त व्यंजनों में जो व्यंजन सबल (strong) होता है वह अबल (weak) व्यंजन को अपने समान बना देता है । व्यंजनों के बलाबल का क्रम इस प्रकार है : (i) स्पर्श, (ii) अनुनासिक, (iii) ल, (iv) स, (v) व, (vi) य, और (vii) र. जब समान बलवाले व्यंजन संयुक्त रूप में आते हो तब पहला व्यंजन दूसरे के समान हो जाता है : भत्त (भक्त), जम्म (जन्म). असमान बल वाले संयुक्त व्यंजनों में से सबल व्यंजन अबल को अपने समान बना लेता है : (i) लग्ग (लग्न), (ii) सुक्क (शुक्ल), (iii) अरण्ण (अरण्य), (iv) बिल्ल (बिल्व), (v) सल्ल (शल्य), (vi) सव्व (सर्व), (vii) वस्स (वर्ष), (viii) सिस्स (शिष्य) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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