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________________ (vi) प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण नीलुप्पलं, घरमोरो, वीरजिणो, जिणेदो, सीलधनो, वज्जदेहो बहुव्रीहि-एक से अधिक पद मिलकर किसी अन्य पद का विशेषण के रूप में बोध कराते हो :- मूढदिसो, लंबकण्णो, बहुधनो, पीअंबरो, दिनभोजनो 'न' बहुव्रीहि-अभयो, अणाहो, अपुत्तो; 'स' बहुव्रीहि-सफलं, सणाहो तत्पुरुष-इसमें उत्तरपद की प्रधानता होती है एवं पूर्वपद जिस विभक्ति (द्वितीया से सप्तमी) से उत्तरपद से जुड़ा हो उसका लोप हो जाता है । द्वितीया-गामगतो (ग्रामं गतो), सुहपत्तो, इंदियातीतो तृतीया-उरगो (उरसा गतो), रसपुण्णं, दयाजुत्तो चतुर्थी-बहुजणहिओ (बहुजनाय हितः), धम्ममंगलं, बुद्धदेय्यं पञ्चमी-नगरनिग्गतो (नगरात् निर्गतः), संसारभीओ, रिणमुत्तो षष्ठी-देवमंदिरं (देवस्य मंदिरम्) राजपुत्तो, फलरसो, लेहसाला सप्तमी-कलाकुसलो (कलासु कुशलः), धम्मरतो, विसयासत्ति 'न' तत्पुरुष-निषेधसूचक 'अण' या 'अ' के साथ - अदिट्ठ, अमोघो, अणिटुं, अणायारो उपपद-कृदन्त साधित पद के साथ:- धम्मधरो, सुखाहारो, गंठिछेदओ, कुंभगारो, सव्वण्णु, पायवो, नीयगा, पावनासगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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