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________________ शब्द रचना (घ) स्त्रीलिंगी प्रत्यय अपभ्रंश में स्त्रीलिंगी 'आ' प्रत्यय के बदले में 'ई', एवं 'ई' के बदले में 'इ'; और 'इअ' भी प्रयुक्त होते हैं : रुट्ठी (रुष्टा), दिण्णी (दत्ता); जोअंति, गणंति ( गणयन्ती); उड्डावंतिअ (च) समास समास का अर्थ है संक्षेप अर्थात् थोड़े शब्दों को जोडकर अधिक अर्थ प्रकट करने की प्रक्रिया । प्राकृत में ध्वनि परिवर्तन का वृद्धि के साथ साथ समास के शब्द कभी कभी अमिश्रित सीधे सादे सरल शब्द बन गये, जैसे - लेहारिय ( लेखहारिक), इंदीआल (इन्द्रियजाल), पितुच्छा (पितृष्वसा ), देउल (देवकुल) । प्राकृत भाषा में समास संस्कृत की तरह ही बनते हैं परन्तु इनमें शब्दों का क्रम कभी कभी तर्क-संगत नहीं रहता हैं : जैसे - मूढदिसो (दिङ्मूढः), पच्छन्नपलास ( पलाशप्रच्छन्न ), धवलकओववीअ ( कृतधवलोपवीत), कासारविरलकुमुआ (विरलकुमुदकासाराः), कंचुआभरणमेत्ताओ (कञ्चुकमात्राभरणा: ) । (i) (ii) (iii) (iv) ९७ समास इस प्रकार हैं : द्वन्द्व-दो या अधिक शब्द इसमें एक साथ आते हैं : जीवाजीवा, दुकतिकं, जरामरणं, सुहदुक्खाई, देवदानवगन्धव्वा, नाणदंसणचरितं द्विगु- इसमें प्रथम शब्द संख्यासूचक होता है : चउक्कसायं, नवतत्तं, तिभवा अव्ययीभाव- इसमें प्रारंभ में आनेवाले अव्यय के अर्थकी प्रधानता होती है : अन्तोपासादं, मज्झेगंगं, अणुरूवं, उवगुरुं, पइदिणं, जहासत्ति, सायंकालं कर्मधारय - यह विशेषण एवं विशेष्य का समास हैं । कभी कभी इसका पूर्वपद उपमासूचक भी होता है : सेतकपोतो, का - पुरिसो, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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