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प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
और कुछ धातुओं में 'न' जोडा जाता हैं । प्राकृत में 'त' का प्राय: 'अ' 'य' (इअ, इय) और 'न' का 'ण' हो जाता हैं ।
( प्राकृत ) ( पालि ) ( प्राकृत ) ( पालि ) ( प्राकृत)
भूअ, ( हूअ ) भूत
पडिअ
पतित
कय
कत
चरिअ
चरित
पेसिअ
पेसित
णाय
गीय
पीय
আत
गीत
पीत
सुय
सुत
संत ( श्रान्त) सन्त
पुच्छित
इच्छित
जिनित
कारित
हसापित
भिण्ण
छिण्ण
दिण्ण
जिण्ण
हीण
लीण
रुण्ण
पुच्छिअ
इच्छिअ
जिणिअ
कारिअ
हसाविअ
(ब) ध्वनि परिवर्तन के साथ अन्य रूप प्राकृत एवं पालि में :
भुत्त, खित्त, भग्ग, परिमुक्क, पुट्ठ, दिट्ठ, नट्ठ, दड्ढ, लुद्ध
(भुक्त, क्षिप्त, भग्न, परिमुक्त, पृष्ट, दृष्ट, नष्ट, दग्ध, लुब्ध)
(स) अपभ्रंश में कृदंत के आगे स्वार्थे 'अ' (क) भी मिलता
(पालि )
भिन्न
छिन्न
दिन्न
जिण्ण
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जायअ, मुक्कअ, इत्यादि.
प्राकृत और अपभ्रंश में कर्मणि भूत कृदन्त के लिए 'इल्ल' भी कभी कभी जोड़ा जाता है- पुच्छिल्ल, आणिल्ल(य)
होन
लीन
रुण्ण
(क) पश्चकालीन प्राकृत भाषा में एवं अपभ्रंश में सकर्मक क्रिया के कर्मणि भूत कृदन्त के साथ कर्ता का रूप तृतीया विभक्ति में प्रयुक्त होने के बदले उसका प्रथमा विभक्ति का रूप प्रयुक्त होने लगा और क. भू. कृदन्त प्रथमा विभक्ति के अनुरूप बनकर भूत काल का बोध कराने लगा, जैसे
अहं पभणिओ (मए पभणिअं ), सा भासिआ (तीए संभासिअं) गणहरो पकहिओ (गणहरेण पकहिअं), रुप्पिणी पसूया पुत्तं ( रुप्पिणीए पसूयं पुत्तं), भोयणं भुत्ता मो ( अम्हेहिं भोयणं भुत्तं), सो कहं कहिउं आरद्धो (तेण
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