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चिन्तामणि - स्तोत्र
[११] इति जिनपति - पार्श्वः, पार्शपाख्यियक्षः, प्रदलित - दुरितौघः प्रीणित - प्राणिसार्थः । त्रिभुवन - जनवाञ्छा-दान - चिन्तामणीकः, शिवपद - तरुबीजं बोधिबीजं ददातु ॥
भगवान् पार्श्वनाथ की शुद्ध भक्ति से लौकिक सुख ही नहीं, आध्यात्मिक-सुख भी मिलता है।
पार्श्व नाम का यक्ष जिनका सेवक है, ऐसे जिनपति पार्श्वनाथ, जिन्होंने अपने समस्त कर्मों को क्षय करके परमशुद्धि प्राप्त की और संसार के समस्त प्राणियों को सुख प्रदान किया, और जो विश्व के समग्र जीवों की इच्छा-पूर्ति करने में चिन्तामणि-रत्न के समान हैं, वे भगवान् पार्श्वनाथ मुझे मोक्षरूपी वृक्ष के लिए बीज-भूत शुद्ध सम्यक्त्व प्रदान करें।
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