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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
इस बात को लेकर आचार्यश्री ने अपने कवित्व का बड़ा ही भावपूर्ण चित्र उपस्थित किया है। ___'राग' शब्द के दो अर्थ हैं—एक लाल रंग और दूसरा मोह । 'राग' शब्द से विरोधी सम्बन्ध रखनेवाले 'वीतराग' शब्द के भी दो अर्थ हैं—एक लाल रंग से रहित और दूसरा मोह से रहित । इन्हीं दो अर्थों पर श्लोक का बहुत सुन्दर भवन खड़ा किया गया है। ___ आचार्यश्री अशोकवृक्ष पर वीतरागत्व घटित करते हुए कहते हैं कि-भगवान् के सत्संग के प्रभाव से अशोकवृक्ष भी वीतराग बन जाता था। किस प्रकार बन जाता था ? भगवान् का शरीर नील, अर्थात् श्याम वर्ण का था। अतः उनके दिव्य शरीर से निकलनेवाला प्रभा-मण्डल भी नीला ही होता था। उधर अशोकवृक्ष के पत्ते लालिमा लिये हुए होते थे। परन्तु ज्यों ही भगवान् के दिव्य-शरीर से निकलनेवाला किरणों का नील-प्रभा-मण्डल ऊपर अशोकवृक्ष के पत्तों पर आलोकित होता था, त्यों ही उनके लाल रंग को अभिभूत कर लेता था, दबा लेता था, अतः वे वीतराग-लाल रंग से रहित हो जाते थे। भाव यह है कि भगवान् जब अशोक वृक्ष के नीचे बैठते थे, तो वह प्रभा-मण्डल के कारण लाल नहीं रहता था, नीला हो जाता था।
भगवान् का सत्संग बड़ा अलौकिक चमत्कार रखता है। भगवान् के वचनामृत श्रवण करना और वार्तालाप आदि करना तो दूर की बात है, उनके चमत्कार का तो कहना ही क्या ?
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