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चारित्र्य-सुवास
जो बहनें अपनी शील-रक्षाका दृढ़ संकल्प करती हैं उन्हें, अनेक कष्टों और प्रलोभनोंको सहन करते हुए भी अन्तमें ईश्वरीय सहायता अवश्य मिल जाती है, यह बात इस दृष्टान्तसे स्पष्ट फलीभूत होती है।
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आदर्शदर्शी राजा
सम्राट अशोकने अपने जन्मदिन पर राज्यके सभी सूबेदारोंको बुलाकर आज्ञा दी कि आज मुझे, वर्षभरमें सबसे अच्छा काम करनेवाले सूबेदारको पुरस्कार देना है, इसलिए प्रत्येक सूबेदार अपना कार्यकलाप मुझे बताएँ। उत्तरके सूदेदारने कहा, 'मान्यवर, मैंने अपने प्रदेशकी आय तीनगुनी बढ़ा दी है।' दक्षिणके सूबेदार बोले, 'राज्यके कोषमें प्रतिवर्ष भेजा जाता रहा सोना मैंने इस वर्ष दूना कर दिया है।' पूर्वके सूवेदारने निवेदन किया, 'महाराज, पूर्वकी उपद्रवी प्रजाको मैंने कुचल दिया है, अब वह कभी-भी अपने सामने आँख उठाकर नहीं देख सकेगी।' पश्चिमके सूबेदारने वृत्तान्त दिया, 'मैंने प्रजासे लिये जानेवाले करमें बढ़ोतरी की है और राज्यकर्मचारियोंके वेतनमें कमी करके आयमें अच्छी वृद्धि कर दी है।' इन सवकी बात सुनकर मध्यप्रान्तका सूबेदार भयसे थर्राते हुए बोला, 'महाराज ! क्षमा करें। राज्यकी आयमें मैं इस वर्ष वृद्धि नहीं कर सका । उलटे, राज्यके कोषमें प्रतिवर्षकी अपेक्षा मैंने कम धन भेजा है, क्योंकि मैंने अपने प्रदेशमें आपकी प्रजाको शिक्षा देनेके लिए नयी पाठशालाएँ खोली
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