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________________ चारित्र्य सुवास ६६ सहायतासे जीत लिया। जीतसे मदान्ध बने हुए सैनिक बहुत-सी बार उन्मत्त होकर नहीं करनेके काम करते हैं। एक गढ़वाली युवान सैनिक भी अपनी कामलिप्सा तृप्त करनेके अभिप्रायसे एक वृद्ध सैनिकके साथ एक गाँवमें निकला। अँधेरेका समय था । एक छोटे-से घरमें देखा तो एक वृद्ध एवं दुर्बल आदमी और उसकी युवान पुत्री वहाँ थे । घरके द्वारके पास ही युवती बैठी थी । दूरसे ही इन सैनिकोंको आते देखकर वह सावधान हो गयी और जैसे ही वह सैनिक घरमें घुसनेका प्रयत्न करता है कि तुरन्त एक लम्बे हत्थेवाला लोहेका तीक्ष्ण हथियार लेकर वह अपनी रक्षाके लिए तैयार हो गयी । युवतीका मिजाज देखकर वह सैनिक अन्दर जानेकी हिम्मत नहीं कर सका। उसने युवतीको दस रुपयेका नोट दिखाया तो भी युवतीने फिरसे उसे वही हथियार दिखा दिया । 'अब क्या करना ?' इस विचारमें वह युवान था, तभी साथके वृद्ध सैनिकने उस युवान सैनिकको राइफल ताकने लिए कहा। उस युवानने युवतीके सामने राइफल दिखाकर उसे डरायी परन्तु उस निर्भय युवतीने फिरसे वही शस्त्र उसके सामने दिखाया । यौं लगभग दस मिनट तक धमकियोंका द्वन्द्वयुद्ध-सा चलता रहा परन्तु युवकको उसमें सफलता नहीं मिली । 'इस युवतीको वशमें करनेके लिए अब क्या करना ?' ऐसा विचार दोनों सैनिक कर रहे थे, इतनेमें एक ज़हरी नागने आकर सैनिकको डस लिया और वहीं उसका मरण हो गया । वृद्ध सैनिक तो चकित हुआ और वहाँसे एकदम पलायन कर गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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