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________________ चारित्र्य-सुवास नीरस ही, परन्तु जो तुम्हारी रसिक बातोमें अटका होता तो सारे देशके प्रधान सेनापति पद तक पहुँचना क्या उसके लिए सम्भव था ?' पुरानी स्मृति ताजी होनेसे वह स्त्री सब बातें समझ गयी और उसने उस महापुरुषका योग्य सम्मान किया। ४४ पात्रानुसार धर्मका दान महात्मा ईसा मसीहके पास धर्मलाभके लिए दो मछुए आये। उन्हें सुन्दरतापर बहुत आसक्ति थी। महात्मा ईसा साहवने कहा, 'तुम्हारी यह सुन्दर-सुन्दर गूंथी हुई मछली पकड़नेकी जालको सदाके लिए त्याग दो तो मैं तुम्हें धर्मका उपदेश दूं।' दूसरा एक प्रसंग है : अपनी कीर्ति और प्रतिष्ठाके घमण्डवाला एक व्यक्ति महात्मा ईसाके पास आया। वह यदि दिनमें उनके पास जाय तो उसे स्वयंकी प्रतिष्ठा हलकी पड़नेका भय लगता था, इसलिए उसने रातको महात्मा ईसाके पास जाकर धर्मवोध देनेकी प्रार्थना की। महात्माने उस समय उपदेश नहीं दिया और उस व्यक्तिको दिनमें आनेके लिए कहा। __इसप्रकार जबतक साधकके जीवनमें लक्ष्यका निश्चय न हो तवतक उसमें यथार्थ पात्रता नहीं आती। सद्वर्तनद्वारा जब श्रीगुरुका उपदेश पचानेकी शक्ति आती है तभी उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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