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________________ . चारित्र्य-सुवास एक दिन राजा प्रातःकालमें अपने क्रीडा-उपवनकी ओर जा रहा था। मार्गमें उसने एक तेजस्वी, सौम्य और पवित्र ब्राह्मणको देखा, उसने अपना रथ रोका और ब्राह्मणको नमस्कार किया। किसी भी प्रकारका आशीर्वाद देनेके बदले उस ब्राह्मणने कुछ क्षणोंके लिए अपनी आँखें बन्द कर ली। राजा विस्मयको प्राप्त हुआ और ब्राह्मणसे पूछा, "विप्र, मुझे आशीर्वाद देनेके बदले तुमने आँखें क्यों बन्द कर ली ?' ब्राह्मणने कहा, महाराज ! प्रभुने आपको अपार सम्पत्ति दी है, परन्तु आप उसका थोड़ा भाग भी दानके लिए उपयोगमें नहीं लेते। शिबि और कर्ण जैसे दानवीरोंके उत्तराधिकारी आप, दानधर्मको भूलकर कृपण हुए हैं इसलिए मैंने आपको नहीं, परन्तु आपके लोभी स्वभावको देखकर अपनी आँखें बन्द कर ली। राजा भोज विवेकी और विचारक थे। सत्य बोध मिलते ही जाग्रत हो गये, और ब्राह्मणका आभार मानते हुए कहने लगे कि तुम्हारे जैसे सत्यवादी और राजाके दुर्गुण बतानेवालेके साहसको धन्य है। राजभण्डारमेंसे अभी तुम्हें एक लाख रुपये दिये जायेंगे, और जब भी किसी सत्कार्यके लिए विशेषकी आवश्यकता हो तब राजदरबारके द्वार खटखटाना। यही गुणग्राही-स्वभाववाले राजा भोज आगे जाकर अपनी महत्ता, कलाप्रियता, सत्यनिष्ठा, दानवीरता, न्याय आदि गुणोंके कारण भारतके महान सम्राटोमें गिने गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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