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भूलेकी स्वीकृति
बंगालके सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और 'वंदे मातरम्' गीतके रचयिता श्री बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्यायके नामसे कदाचित् ही कोई अपरिचित होगा। उन्होंने अमुक विषयपर अपना अभिप्राय प्रगट किया था परन्तु बादमें उसकी सत्यता न लगनेसे उस अभिप्रायमें परिवर्तन किया। इसप्रकार अपना अभिप्राय बदलनेसे उनपर बहुत-से लोगोंने 'चंचल, अस्थिरचित्त आदि' आक्षेप किये। उसके स्पष्टीकरणमें श्रीयुत बंकिमचन्द्रने कहा कि जिसे कभी भी अपना अभिप्राय बदलनेकी आवश्यकता नहीं होती वह महापुरुष है, और जो अपने प्रथम अभिप्रायको भूल-भरा जानते हुए भी उसीको पकड़े रखता है वह कपटी है। मैं महापुरुष तो हूँ नहीं और कपटी बननेकी मेरी इच्छा नहीं है, इसलिए मुझे जो सत्य प्रतीत हुआ वही प्रगट किया है। बंकिमबाबूके इस उत्तरका अचूक प्रभाव हुआ और लोग, उनपर किये गये आक्षेपोंके लिए पछताने लगे। .
भक्तकी नम्रता
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श्री देशिकजी नामक एक बड़े विद्वान-भक्तके जीवनका यह प्रसंग है। श्री रामानुजाचार्यकी परम्परामें, तेरहवीं शताब्दीमें हुए वे एक प्रसिद्ध सन्त थे।
उनकी भक्ति और विद्वत्ता देखकर अनेक लोग उनसे
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