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________________ चारित्र्य-सुवास मालिक जागता था परन्तु उसने समता रखी। जो कुछ हो रहा था वह सब देखता रहा। चोरने सब मालसामान एक पोटलेमें बाँधा और उस पोटलेको उठाकर सिरपर रखने लगा, परन्तु भार बहुत अधिक होनेसे पोटला उचका नहीं गया, इससे चोर आकुलित हुआ। घरका मालिक उठा और चोरसे कहा, भाई ! ला, मैं तुझे पोटला सिर पर रखवाता हूँ । चोर तो घबरा गया परन्तु 'न भागा जाय न छोड़ा जाय' जैसी स्थितिमें देखकर घरमालिकने उसे कहा, भाई ! तुझे इन वस्तुओंकी आवश्यकता है इसीलिए तो तू चोरी करने आया । मुझे इन व तुओंके बिना चलेगा, तू ले जा। ऐसा कहकर, चोरके कुछ बोलनेसे पहले ही पोटला उस चोरके सिरपर रखवा दिया। घर जाकर चोरने सारा सच्चा और वास्तविक वृत्तान्त अपनी मातासे कह सुनाया। सारा वृत्तान्त सुनकर माताने वह पोटला जिस घरसे चुराकर लाया था वहीं वापस सौंप देनेको कहा। चोरने वापस उस घरमें जाकर पोटला रखते हुए कहा, 'मालिक, आजसे मुझे इस दुष्कर्मका आजीवन त्याग है।' . देखो ! सच्चारित्रकी कैसी अपार महिमा है !! यह प्रसंग प्रसिद्ध अध्यात्म-कविवर बनारसीदासके जीवनका है, जो शहंशाह अकबर और जहांगीरके दरबारमें अपनी विद्वत्ता और कवित्वशक्तिके लिए आदर-सत्कार प्राप्त करनेवाले महापुरुष थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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