SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ चारित्र्य-सुवास है। मेरे मस्तकके पुरस्कारकी रकम इस यात्रीको दे दे। अन्य कुछ मेरे पास देनेके लिए नहीं है, और इस बेचारेको पैसेकी आवश्यकता है। पूरी सभा स्तब्ध रह गयी। नीरव शान्ति प्रसर गयी। काशीनरेशके परिणाम बदले। उनकी आँखोंमेंसे आँसूकी धार बह निकली । उन्होंने कहा, 'कोशलराज, जो होना था सो हो गया परन्तु तुम्हारी कीर्तिपर अब कलश नहीं चढ़ने दूंगा। तुम धन्य हो।' सहसा सिंहासन परसे उतरकर उन्होंने कोशलराजको सम्मानपूर्वक राजगद्दी वापस सौंप दी। अपशब्द कहाँ जायें ? भगवान बुद्धके पास अनेक पुरुषोंने दीक्षा ली थी, उसमें भारद्वाज नामका एक ब्राह्मण भी था। भारद्वाजके इस कृत्यसे उसका एक सम्बन्धी (कुटुम्बी) बहुत क्रोधित हुआ और बुद्ध भगवानके पास आकर उनको बहुत-सी गालियाँ दी और अपशब्दोंसे तिरस्कार करने लगा। बुद्धदेव शान्त और मौन रहे, अतः वह गाली देनेवाला अन्तमें थककर चुप होकर बैठ गया। ___ थोड़ी देर बाद तथागतने उसे पूछा, क्यों भाई ! तेरे यहाँ कोई मेहमान आते हैं कि नहीं ? 'हाँ आते हैं। उसने उत्तर दिया। तथागतने पूछा, 'तू उनका सत्कार करता है कि नहीं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy