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तीसरा नेत्र (१)
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करता, सामायिक या अन्य धार्मिक उपासनाएं नहीं करता तब मन में कोई विकल्प नहीं आता, मन शांत रहता है मैं ध्यान को छोड़ देता हूं।
__ मैने कहा—मन के भीतर बहत कूड़ा-करकट भरा पड़ा है। उसमें अनेक स्मृतियां और संस्कार हैं । जब हम मन को एकाग्र करते हैं तब उन संस्कारों के साथ छेड़छाड़ होती है। मन कुरेदा जाता है, तब वे संस्कार उभरते हैं, स्मृतियां जागती हैं। जो गंदगी दबी पड़ी थी, वह ऊपर आती है और निकल जाती है। उस गंदगी का निकलना श्रेयस्कर है। यह विकास का मार्ग है।
साधना में अनेकान्त-दृष्टि चाहिए। अनेकान्त की दृष्टि से देखने पर सारी समस्याएं सुलझ जाती हैं। एक बात को पकड़ने पर कठिनाइयां पैदा होती हैं। कुंडलिनी का जागरण
आज सारे संसार में कुंडलिनी की बहुत चर्चा है । कुंडलिनी को जगाना योग का पर्याय बन गया है । समूचे योग जगत् में इसकी चर्चाएं हो रही हैं । कुंडलिनी-जागरण
का एक बवंडर खड़ा कर दिया गया है। मैं पूछता हूं कि कौन ऐसा आदमी है . जिसकी कुंडलिनी जागी हुई नहीं है ? प्रत्येक आदमी की कुंडलिनी जागी हुई है।
आदमी योग की साधना करे या न करे, आदमी की कुंडलिनी जागी रहती है। शरीर में भोजन का पाचन होता है। किसके द्वारा होता है ? भोजन का पाचन कुंडलिनी के द्वारा होता है। शरीर में गर्मी है। इसका कारण क्या है ? कुंडलिनी ही इसका कारण है । कुंडलिनी है हमारे तैजस शरीर की शक्ति । यह है तेज की शक्ति, दीप्ति की शक्ति, प्रकाश की शक्ति। यह सारे शरीर का ताप है, गर्मी है । तैजस शरीर की गर्मी कुंडलिनी है । यह जागी हुई रहती है। यह और अधिक जाग सकती है। इसके जागरण के अनेक मार्ग हैं, एक ही मार्ग नहीं है । यह आसन करने, ध्यान या प्राणायाम करने से जाग सकती है । उपवास के द्वारा, तपस्या के द्वारा भी यह जाग सकती है। विनम्रता, स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग के द्वारा भी यह जाग सकती है। इसके जागरण का एक ही साधन नहीं है। अनेक व्यक्ति : अनेक उपाय
किसी व्यक्ति के ध्यान अनुकूल नहीं होता। किसी के आसन और प्राणायाम अनुकूल नहीं होता। क्योंकि सबके शरीर की रचना भिन्न-भिन्न होती है। मन का वेग भी समान नहीं होता। कुछेक व्यक्तियों के मन का वेग इतना तीव्र होता है कि वे ध्यान में नहीं जा सकते । इस स्थिति में हम अनेकान्त-दृष्टि का उपयोग करें । सब साधकों को अलग-अलग दृष्टि से तोलें, समझें। जो सीधे ध्यान में न जा सकें,
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