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अनेकान्त है तीसरा नेत्र
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इसलिए वे परस्पर वाद-विवाद करते हैं, लड़ते हैं । वे दो आंखों से देखते हैं । अनेकान्त की आंख, समता या तटस्थता की आंख खुली नहीं है, इसका कारण है कि दार्शनिक खोज से उपरत हो गए हैं। वे प्रयोग की प्रक्रिया को भूल बैठे हैं आज का वैज्ञानिक प्रतिदिन नए-नए आविष्कार करता चला जा रहा है । वह प्रयोग में संलग्न है । विज्ञान ने हमारे समक्ष अनेक सूक्ष्म सत्य प्रस्तुत किए हैं। उसने अनेक अव्यक्त पर्यायों को व्यक्त किया है । कुछ वर्ष पूर्व तक जो तथ्य अंधविश्वास की कोटि में आते थे, वे आज सत्य की कोटि में आ गए हैं ।
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संख्या की परम कोटि - शीर्षप्रहेलिका
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जैन आगमों में गणना की परम कोटि का उल्लेख है । उसकी संज्ञा हैं-शीर्षप्रहेलिका । उसके समक्ष आज की संख्या बहुत छोटी होती है। एक अंक पर दो सौ चालीस शून्य लगाने से वह संख्या बनती है । यह उत्कृष्ट संख्या है। जब विज्ञान ने सूक्ष्म गणित की बातें प्रस्तुत कीं, तब शीर्षप्रहेलिका की सत्यता स्वयं प्रस्थापित हो गई और उसे बहुत महत्त्वपूर्ण खोज माना गया ।
ध्वनि-विज्ञान की महान् उपलब्धि
जैन साहित्य में उल्लेख है कि एक घंटा है अवस्थित । वह एक स्थान पर बजता है । उसकी ध्वनि से प्रकंपित होकर दूर-दूर हजारों-लाखों घंटे बज उठते हैं । असंख्य योजन तक यह घटना घटित होती है । लोगों ने इस उल्लेख को कपोल-कल्पित बताया । किन्तु जब विज्ञान ने ध्वनि तरंगों की द्रुतगामिता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया तब यह सत्य भी प्रमाणित हो गया । आज यह ध्वनि-विज्ञान की महानतम उपलब्धि माना जाता है ।
जब तक व्यक्ति सूक्ष्म पर्यायों की ओर प्रस्थान नहीं करता, तब तक सच्चाई को नहीं पा सकता। जब तक अनेकान्त की दृष्टि का विकास नहीं होता, तब तक उस दिशा में प्रस्थान नहीं हो सकता ।
साधना में अनेकान्त - दृष्टि
साधना के क्षेत्र में भी तीसरी आंख खुले बिना कोई विकास नहीं हो सकता । तीसरी आंख तब खुलती है जब मन में जमा हुआ सारा मैल धुल जाता है, जब मन पर जमा कूड़ा-करकट साफ हो जाता है, तब मन दर्पण-सा निर्मल हो जाता है 1
एक भाई आकर बोला- महाराज ! मेरी स्थिति विचित्र है । जब कभी मैं ध्यान या उपासना करने बैठता हूं, तब विकल्पों का तांता - सा लग जाता है । कभी न आने वाले विचार आते हैं, मन के संस्कार उभरते हैं तो मैं सोचता हूं कि यदि ध्यान नहीं
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