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________________ तीसरा नेत्र (१) ६७ बहुत विशाल है। वह कहता है--स्थूल जगत् के नियमों के आधार पर सत्य की व्याख्या मत करो, केवल व्यवहार नय के आधार पर सत्य की व्याख्या मत करो। सत्य की व्याख्या का सबसे बड़ा द्वार है सूक्ष्म पर्याय का जगत्, निश्चय नय का जगत् । जब तक निश्चय और व्यवहार—दोनों का समन्वय नहीं होता तब तक तीसरी आंख नहीं खुलती। तीसरी आंख के खुल जाने का अर्थ है-निश्चय और व्यवहार का एक साथ हो जाना। तीसरी आंख के खुल जाने का अर्थ है-सूक्ष्म और स्थूल पर्याय-दोनों की ओर हमारी दृष्टि का विकास होना । जब नए तथ्य हमारे समक्ष आते हैं तब हम विस्मित हो जाते हैं। विस्मय का कोई कारण नहीं है। जो व्यक्ति निश्चय नय को जानता है, सूक्ष्म पर्यायों के रहस्य को जानता है, उसके लिए कुछ भी आश्चर्य नहीं है । आश्चर्य हमारी नासमझी के कारण होता है । मताग्रह हमारी नासमझी का परिणाम है । साम्प्रदायिक खींचतान, उन्माद-यह सब मूढ़ता के कारण होता है । आदमी एक बात को पकड़ लेता है और उसके प्रति मूढ़ हो जाता है। दूसरी बात सामने आती है तब वह उन्मत्त हो जाता है, कुपित हो जाता है। एक दिन एक राजनेता अपने सचिव पर उबल पड़ा। उसने कहा-“मैंने तुम्हें पन्द्रह मिनट का भाषण तैयार करने के लिए कहा था, और तुमने एक घण्टे का भाषण तैयार कर मुझे दे डाला । मैं उसे सुनाते-सुनाते थक गया । श्रोताओं ने टोका । मेरा अपमान किया। तुमने ध्यान नहीं दिया। तुम सचिव रहने योग्य नहीं हो।" सचिव ने कहा—'महाशय ! मेरी भी सुनें। मैने केवल पन्द्रह मिनट का ही भाषण तैयार किया था। उसकी चार प्रतियां की गई थीं। आप चारों साथ ले गए और एक के बाद एक पढ़ते ही गए.' _आदमी मताग्रह में इतना उलझ जाता है कि उसे पता ही नहीं होता कि वह क्या कहे जा रहा है । बड़ी कठिनाई होती है उस समय । यह मताग्रह इसीलिए होता है कि व्यक्ति सूक्ष्म जगत् पर पर्दा डालकर बैठ जाता है । वह सूक्ष्म जगत् को सर्वथा अस्वीकार कर देता है । वह सामने व्यक्त होने वाले थोड़े से स्थूल पर्यायों को स्वीकार कर, स्थूल नियमों को स्वीकृति देकर सत्य की हत्या कर देता है। विज्ञान धर्म का उपकारी सामान्य लोग स्वर में स्वर मिला कर कह देते हैं—विज्ञान ने धर्म की हत्या कर डाली । मैं कहता हूं-विज्ञान ने धर्म का जितना उपकार किया है उतना संभवत: किसी ने नहीं किया। यदि आज विज्ञान सूक्ष्म पर्यायों की खोज में नहीं जाता, सूक्ष्म सत्यों की घोषणाएं नहीं करता तो ये विभिन्न दार्शनिक और अधिक उग्र हो जाते और अधिक संघर्ष करने लग जाते । दार्शनिकों की तीसरी आंख खली नहीं है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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