________________
६६
अनेकान्त है तीसरा नेत्र
राजा की रानी बगीचे में बैठी थी। एक तोते ने उस पर विष्ठा कर दी। रानी क्षुब्ध हो गई। वह महलों में गई और कोपघर में जाकर सो गई । राजा आया। रानी को क्षुब्ध देखकर क्षोभ का कारण पूछा। रानी ने मूल कारण बताते हुए कहा-~-या तो आप सारे राज्य के तोतों को मरवा डालें या मैं आत्महत्या कर प्राण देदूंगी। राजा असमंजस में पड़ गया। एक ओर निरपराध हजारों तोतों की जिन्दगी का प्रश्न था और दूसरी ओर रानी के मर जाने की आंशका थी। राजा ने रानी को मनाना चाहा, पर सब व्यर्थ । उसने हजारो तोतों को मरवा डाला। तोतों के सरदार को यह पता लगा। वह राजा के समक्ष उपस्थित होकर मनुष्य की भाषा में बोला-राजन् ! आप हमारे कुल का विनाश क्यों कर रहे हैं? आप रक्षक हैं, भक्षक क्यों बन रहे हैं? राजा मनुष्य की भाषा में बोलते हुए तोते को देखकर विस्मित हुआ। कुछ बातचीत हई। अन्त में राजा ने पूछा-बोलो, संसार में पुरुष अधिक हैं या स्त्रियां? तोते ने कुछ क्षण मौन रहकर कहा- ऐसे तो पुरुष और स्त्रियां बराबर हैं, किन्तु जो पुरुष स्त्री की बात मानकर चलता है, वह भी स्त्री है। इस दृष्टि से स्त्रियां अधिक हैं। पुरुष
कम।
न जाने पुरुष के वेष में कितनी स्त्रियां होती हैं और स्त्री के वेश में कितने पुरुष होते हैं। ऐसी भी घटनाएं घटती हैं कि एक ही जीवन में पुरुष स्त्री भी बन जाता
और फिर नपुंसक भी हो जाता है। वह तीनों वेदों की व्यक्त पर्याय का उपभोग कर लेता है। यौन-परिवर्तन के अनेक उल्लेख प्राचीन जैन व्याख्या साहित्य में मिलते हैं। आज का विज्ञान भी इस यौन-परिवर्तन के सिद्धान्त को मान्यता दे चुका है। प्राचीन काल में भी यौन-परिवर्तन होता था, किया जाता था और आज भी वह होता है, किया जाता है। अव्यक्त पर्याय का जगत् ___अनेकान्त की दृष्टि से इस पर विचार करें। व्यक्त या स्थूल पर्याय के आधार पर जो बोध होता है, वह पूर्ण नहीं होता। व्यक्त पर्याय का जगत् बहुत छोटा है । अव्यक्त पर्याय का जगत् बहुत बड़ा । स्थूल पर्याय थोड़े हैं, सूक्ष्म पर्याय अधिक हैं। जब तक सूक्ष्म या अव्यक्त पर्याय के जगत् में पादन्यास नहीं करते तब तक निर्णय एकांगी होते हैं, एकान्तदृष्टि के निर्णय होते हैं। अनेकान्त की दृष्टि से वे सारे निर्णय मिथ्या माने जाते हैं। अनेकान्त का अर्थ केवल नियमों की व्याख्या करना ही नहीं है। वह सूक्ष्म पर्यायों की व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। अनेकान्त के अनेक पाठी भी स्थूल जगत् के नियमों पर अनेकान्त को घटित करते हैं। इससे अनेकान्त की सीमा छोटी हो जाती है। वह सीमित दायरे में बंदी हो जाता है । अनेकान्त की सीमा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org