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अनेकान्त है तीसरा नत्र कारणों की जानकारी करनी चाहिए। एक व्यक्ति उन कारणों का जानने के लिए मेरे पास आया। मैं उस समय दिल्ली में था। उसने प्रश्न उपस्थित किया। मैंने कहारात्रि-भोजन न करना धर्म से सम्बन्धित तो है ही, क्योंकि यह धर्म के द्वारा प्रतिपादित हुआ है। इसके साथ इस निषेध का एक वैज्ञानिक कारण भी है। हम जो भोजन करते हैं उसका पाचन होता है तैजस शरीर के द्वारा। हमारे पाचन की शक्ति है तैजस । उसको अपना काम करने के लिए सूर्य का आतप आवश्यक होता है। जब उसे सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता तब वह निष्क्रिय हो जाता है। पाचन कमजोर हो जाता है । इसलिए रात को खाने वाला अपच की बीमारी से बच नहीं सकता। यह कारण वैज्ञानिक है।
. दूसरा कारण है कि जब सूर्य का आतप होता है, तब कीटाणु बहुत निष्क्रिय होते हैं। जैसे ही सूर्य चला जाता है सब में प्राणशक्ति का संचार होता है और वे सब सक्रिय हो जाते हैं। वे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। बीमारी जितनी रात में सताती है, उतनी दिन में नहीं सताती । वायु का प्रकोप भी रात में अधिक होता है। ये सारी बीमारियां रात में इसीलिए सताती हैं कि रात में ताप नहीं होता। जब ताप होता है तब बीमारियां उग्र नहीं होती। जैसे ही सूर्य का ताप मिटता है, बीमारियों में शक्ति आ जाती हैं। कष्ट देने वाले सारे तत्त्व सक्रिय हो जाते हैं। रात में चोर ही नहीं सताते, ये कीटाणु भी सताते हैं । रात में नींद ही नहीं सताती, बीमारियां भी सताती है। ____ एक प्राचीन आचार्य ने रात्रि-भोजन के निषेध का एक कारण बतलाया जो वैज्ञानिक हो या न हो, मनोरंजक अवश्य है।
अकबर जैन आचार्य हीरविजयी को बहुत मानता था। उन्हें वह बहुत सम्मान देता था। कुछेक लोगों में ईर्ष्या जागी। एक व्यक्ति अकबर के पास पहुंचा और बोला-सम्राट् ! आप जैन आचार्य को बहुत सम्मान देते हैं, किन्तु इनके विचार गलत हैं, मान्यताएं भ्रामक हैं। हम गंगा को पवित्र नदी मानते हैं, ये नहीं मानते । हम सूर्य को देवता मानते हैं, ये नहीं मानते । सम्राट ने सुना। उसके मन में जिज्ञासा हई । उसने हीरविजयी से पूछा-क्या आप गंगा को नहीं मानते? क्या आप सूरज को नहीं मानते? आपने कहा-किसने कहा नहीं मानते? हम तो गंगा और सूरज को बहुत मानते हैं। देखें, गंगा के प्रति हमारी श्रद्धा है। लोग जाते हैं। उसमें नहाते हैं। अपने शरीर का सारा मैल उसमें डालते हैं। हम दूर ही खड़े रहते हैं, उसके पानी को छूते तक नहीं । मैल डालने की बात तो दूर। सूरज को हम जितना मानते हैं, संसार में कोई उसको उतना नहीं मानता। जैसे प्रिय जन के बिछुड़ने पर आदमी
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