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सापेक्षता
खाना-पीना छोड़ देता है, वैसे ही हम भी सूरज के बिछड़ने पर खाना-पीना छोड़ देते हैं। कितना प्रिय है हमें सूरज? सम्राट को बात समझ में आ गई। 'स्यात्' है ऋजुमार्ग
प्रत्येक कथन आपेक्षिक होता है । निरपेक्ष कथन नहीं हो सकता। अनेकान्त हमें इस अपेक्षादृष्टि को पकड़ने का बोध देता है, हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। इससे राग-द्वेष कम होता है, पकड़ कमजोर होती है । “स्यात्” शब्द का प्रयोग एक ऐसा ऋजु मार्ग है जिसके सहारे हम विषम घाटियों को पार कर जाते हैं। यह एक ऐसा राजमार्ग है जिसके सहारे ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाकर अपनी यात्रा सहज सम्पन्न कर सकते हैं। हम इस सापेक्षता के महान् सिद्धांत का सही मूल्यांकन करें और सत्य की महान् यात्रा में इसका अधिकतम प्रयोग करें।
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