SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ सापेक्षता हजारों-लाखों वर्ष बीत चुके होते हैं । हजारों पीढ़ियां बीत चुकी होती है । उसे लगता है-क्षण भर बीता है। पर यहां के हजारों-लाखों वर्ष बीत जाते हैं। अनेकानत के दो सूत्र सत्य की खोज भूलभुलैया न बने। सत्य की खोज में चलने वाला असत्य के भूलभुलैये में न उलझ जाए । इन सारी समस्याओं से निपटने के लिए अनेकान्त ने दो महत्त्वपूर्ण सूत्र दिए हैं, जिनका मैंने विस्तार से प्रतिपादन किया है। वे दो आधार सूत्र है-गौण और मुख्य । व्यक्ति एक मुख्य धर्म को जानता है, एक व्यक्त पर्याय को जानता है, जो पर्याय सामने है उसे जानता है, किन्तु इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उसके पीछे अनन्त धर्म अभिव्यक्ति की टोह में प्रतीक्षारत रहते हैं। उस एक व्यक्ति पर्याय के साथ अनन्त अव्यक्त पर्याय छिपे रहते हैं। अनेकान्त ने कहा—मुख्य का प्रतिपादन करो, पर निरपेक्षदृष्टि से मत करो। कथन के साथ "स्यात्" शब्द जोड़ दो। इससे यह स्पष्ट होगा कि प्रतिपादन मुख्य का हो रहा है। शेष सारे गौण हैं। किन्तु यदि हम मुख्य धर्म को ही पूर्ण सत्य मान लें तो भटक जाएंगे। सत्य की डोर हमारे हाथ से छूट जाएगी और तब वह आंशिक सत्य भी असत्य बन जाएगा। सत्य के लिए सापेक्षता को नहीं छोड़ा जा सकता, “स्यात्” शब्द को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। जिन-जिन दार्शनिकों या विचारकों ने “स्यात्" शब्द का यथार्थ मूल्यांकन नहीं किया और “स्यात्” शब्द की उपेक्षा की वे सब एकांगिता में चले गए। उनका प्रतिपादन एकांगी हो गया। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक कथन के पीछे अपेक्षा जुड़ी रहती है । वह कथन किसी एक दृष्टि से ही किया जाता है। यदि हम उस अपेक्षा को समझ सकें, यदि हम उस दृष्टि को पकड़ सकें तब हमारा प्रस्थान सत्य की दिशा में हो सकता है, अन्यथा नहीं । आज यह सद्यस्क आवश्यकता है कि हम “स्यात्” शब्द के हार्द को समझ कर उसका अधिकतम उपयोग करें। रात्रि भोजन निषेध क्यों? ___एक बार मेरे सामने यह प्रश्न आया कि जैन परम्परा ने रात्रि-भोजन को अस्वीकार क्यों किया? भलां, भूख के लिए भी कोई समय निर्धारित होता है ? यथार्थता यह है कि जब भूख लगे तब खा लो। यह एक ही नियम पर्याप्त है । भूख के लिए क्या रात और क्या दिन? क्या प्रकाश और क्या अन्धकार ? बैंगलोर में एक सम्मेलन हुआ। उसमें अनेक वैज्ञानिकों ने भाग लिया। वहां पर विषय प्रस्तुत हुआ कि जैन परम्परा में रात्रि-भोजन का निषेध किया है। उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy