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________________ ५२ अनेकान्त है तीसरा नेत्र जाए-दाएं चलो, बाएं चलो। कौन दाएं और कौन बाएं । देश के बिना व्याख्या नहीं हो सकती । किसी एक बिन्दु को मानकर हम दाएं-बाएं का प्रयोग कर सकते हैं। अन्यथा न दायां है और न बायां । कुछ भी नहीं होता। अभी यहां (लाड) दिन के साढ़े तीन बजे हैं। क्या मास्को में भी यही समय है अभी? क्या वहां भी अभी दिन है ? दिन और रात की व्याख्या सापेक्षता के बिना नहीं हो सकती। सापेक्षता के बिना ऊपर और नीचे की व्याख्या नहीं हो सकती। ऊपर और नीचे—किस आधार पर कहते हैं ? जब पृथ्वी को चपटी मानकर उसकी व्याख्या की तबऊंचाई-निचाई की बात आई। जब पृथ्वी को गोल मानकर व्याख्या की तब ऊचांई भी सापेक्ष हो जाती है। गोलाई में उंचाई नहीं होती। ऊंचाई, निचाई, छोटा, बड़ा-ये सारे सापेक्ष हैं। छोटा-बड़ा । कौन छोटा और कौन बड़ा? कुछ भी नहीं। मात्र सापेक्षता है। अध्यापक ने विद्यार्थी से कहा-ब्लेक बोर्ड पर जो लाइन खींची गयी है, उसको मिटाए बिना छोटी कर दो। मिटाना भी नहीं और छोटी भी कर देना, यह कैसे संभव हो सकता है ? विद्यार्थी बुद्धिमान् था। उसने छोटी लाइन के नीचे एक बड़ी लाइन खींच दी, अब वह लाइन स्वत: छोटी हो गई। छोटा-बड़ा सब सापेक्ष होता है । हल्का और भारी सापेक्ष होता है । गुरुत्त्वाकर्षण की सीमा में हल्का भी होता है और भारी भी होता है। जहां गुरुत्वाकर्षण की सीमा समाप्त होती है वहां हल्कापन भी नहीं रहता और भारीपन भी नहीं रहता। चिकना, मृदु और कठोर-तीनों सापेक्ष है। कौन चिकना? कौन मुद? कौन कठोर? सारे सापेक्ष हैं । सारे यौगिक हैं। हमारी सारी बातें सापेक्ष होती हैं। जब हम “स्यात्" शब्द को अस्वीकार कर देते हैं, अपेक्षा को भुला देते हैं, वहां बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती है । बतलाया गया है कि देवताओं का आयुष्य करोड़ों-करोड़ों वर्षों का होता है। यह आश्चर्यकारी कथन लगता है। परन्तु कोई आश्चर्य नहीं है। हम सापेक्षता को न भूलें । जो अन्तरिक्ष गुरुत्तवाकर्षण से परे है, वहां काल की सीमा समाप्त हो जाती है। यहां का हजारों वर्षों का काल-माप वहां एक क्षण जैसा भी नहीं होता । जैनागमों में एक प्रंसग आता है। कोई व्यक्ति मरा। वह स्वर्ग में गया। उसने सोचा- 'मैं फिर जाऊं मनुष्यलोक में और मेरे परिवार वालों से मिलूं।' मन में बात आई और उसने तैयारी शुरू की। सब देव बोले-कहां जा रहे हो? उसने कहा-मनुष्यलोक में जा रहा हं, अपने परिजनों से मिलने के लिए। वे बोले-अभी-अभी आए थे। दो मिनिट ठहरो। यहां की रंगरेलियां देखो। वह ठहर जाता है। उसे लगता है, क्षण भर हुआ है । वह वहां से चलकर मनुष्यलोक में आता है । मां, बाप, भाई, बहिन और मित्रों को खोजता है। पूछता है लोगों से। कोई कुछ भी नहीं बता सकते । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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