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सापेक्षता
के भण्डार में चला जाता है, वह वहां लाखों-करोड़ों-अरबों वर्षों तक पड़ा भी रह सकता है। फिर हमें क्यों आश्चर्य हो कि आज महावीर हमें उपदेश देते हुए दिखाई दे दें। फिर हमें क्यों आश्चर्य हो कि ऋषभ और बुद्ध हमें साक्षात् दिखाई दे जाएं । उनके चित्र नहीं है, किन्त जैसा चित्र हमारे मन का होता है, वैसा ही रूप या चित्र हमें दिखाई दे जाता है। एक सिद्धान्त है-हर वस्तु रश्मिवान होती है। प्रत्येक वस्तु में से रश्मियां निकलती हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है । वस्तु चाहे सचेतन हो या अचेतन, आदमी हो या पशु, घड़ा हो या मकान—सब में से तदाकार रश्मियां निकलती हैं और वे समूचे आकाश में व्याप्त हो जाती हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो टेलीविजन का विकास नहीं होता। उस पर किसी का चित्र नहीं उभरता। यह चित्र तभी उभरता है जब तदाकार रश्मियां निकलती हैं। हमारे शरीर का चित्र निकलता है । हमारी वाणी का चित्र निकलता है। हमारे मन का चित्र निकलता है। मनोवर्गणा, वचनवर्गणा और कायवर्गणा तथा अन्यान्य वर्गणाओं के पुद्गल समूचे. आकाश में व्याप्त हैं। सापेक्षता ही सब कुछ ___यदि हमारी चेतना देश और काल की सीमा को तोड़कर अनन्त में चली जाए, विराट् हो जाए तो भूतकाल समाप्त हो जाएगा, भविष्य काल समाप्त हो जाएगा, केवल वर्तमान काल रह जाएगा। केवल वह होता है जिसकी चेतना अनन्त हो जाती है। हम अनन्त के अर्थों में न उलझें। इतना तो स्पष्ट है कि केवली के लिए न भूतकाल होता है और न भविष्यकाल होता है। वे समाप्त हो जाते हैं। वह प्रत्येक घटना को, चाहे फिर वह अतीत में घटित हुई हो या भविष्य में घटित होने वाली हो, वर्तमान प्रत्यक्षरूप से देखता है। सामने घटित होती हुई देखता है । उसके लिए केवल “आज" बचता है, वर्तमान बचता है। एक बात है, जब भूत और भविष्य नहीं रहते तो वर्तमान भी नहीं रहता। ये तीनों शब्द समाप्त हो जाते हैं। केवल घटना रहती है, जो है, वह रहता है, उसके सामने । अनन्तकाल में भी वह लुप्त नहीं होती। अतीत का अनन्त और भविष्य का अनन्त—केवल अनन्त रह जाता है, सारी सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। क्या सापेक्षता के बिना ऐसा संभव हो सकता है? देश-काल की सीमा में बंधने वाला कोई भी निरपेक्ष नहीं हो सकता। देश-काल हमारी घटनाओं के साथ जुड़े हुए हैं। वे इसलिए जुड़े हुए हैं कि किसी भी घटना की व्याख्या देश-काल के बिना नहीं हो सकती। हमने इन दो आयामों का सहारा लिया। इनके सहारे घटनाओं की व्याख्या की। इनके बिना व्याख्या संभव नहीं हो सकती। कभी देश का कथन करना पड़ता है और कभी काल का कथन करना पड़ता है। कहा
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