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समन्वय
बहरा आदमी सुनने लग जाएगा। जीभ सुन सकती है। दांत सुन सकते हैं यह बहुत निकट की बात है। संभिन्नस्रोतोलब्धि
इससे भी आगे की बात जैनाचार्यों ने प्रतिपादित की। उन्होंने एक यौगिक विभूति का उल्लेख किया है। उसकी संज्ञा है---'संभिन्नस्रोतोलब्धि' । यह एक ऐसी विभूति है, जिससे सारा शरीर 'करण' बन जाता है, इन्द्रिय बन जाता है। फिर यह स्थूल विभाग की बात व्यर्थ हो जाती है कि आंख ही देख सकती है, कान ही सुन सकता है आदि-आदि । इस विभूति के प्रगट होने पर शरीर का प्रत्येक अवयव पांचों इन्द्रियों का काम करने लग जाता है। समूचा शरीर देख सकता है, समूचा शरीर सुन सकता है। कुछ लड़कियां हैं जो अंगुलियों से पढ़ सकती हैं। आंख का काम अंगुलियों से करती हैं। यह तथ्य अनेक वैज्ञानिकों को आश्चर्य में डाले हुए है। प्रत्यक्ष को नकार नहीं सकते। वे यह नहीं कह सकते कि अंगुलियों से नहीं पढ़ा जा सकता। किन्तु क्यों और कैसे पढ़ा जाता है—इसकी व्याख्या नहीं कर सकते। यह विषय अभी विज्ञान से परे है। वैज्ञानिक इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं। किन्तु यह तथ्य हजारों वर्ष पूर्व स्वीकृत हो चुका है कि समूचा शरीर हर इन्द्रिय का काम कर सकता है। एक इन्द्रिय से पांचों इन्द्रियों का काम लिया जा सकता है या समूचे शरीर से किसी भी इन्द्रिय का काम लिया जा सकता है। व्यक्त : अव्यक्त
व्यक्त पर्याय का भेद या ऊपर से दीखने वाला भेद तब मिट जाता है जब व्यक्ति गहराई में जाता है, सूक्ष्म नियम की खोज करता है । जब पैठ गहरी होती है तब सारे नियम टूट जाते है । व्यक्त जगत् के नियम सर्वथा भिन्न होते हैं और अव्यक्त जगत् के नियम सर्वथा भिन्न होते हैं। कठिनाई यह होती है कि हम अव्यक्त की व्याख्या व्यक्त के द्वारा करना चाहते हैं और व्यक्त की व्याख्या केवल व्यक्त के द्वारा ही करना चाहते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं या अस्वीकार कर देते हैं कि यह संसार बहुत छोटा संसार है, केवल ऊर्मियों का संसार है, केवल तंरगों का संसार है। किन्तु इन तंरगों के नीचे सत्य का कितना विराट और अनन्त सागर भरा पड़ा है, इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। हम केवल व्यक्त पर्याय के आधार पर सम्पूर्ण सत्य का दावा कर लेते हैं। इससे हम गहरे असत्य में, गहरे अंधकार में चले जाते हैं। अनेकान्त ने सावधान करते हुए कहा—ऐसा मत करो । केवल व्यक्त के आधार पर पूर्ण सत्य की कल्पना का अंहकार मत करो।
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