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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र का माध्यम है “ओरोट्राल” मशीन । आवृत्तियों का अन्तर करने पर रंग सुनाई देने लगता है और ध्वनि दिखाई देने लगती है । भिन्न-भिन्न लगने वाली वस्तुएं एक बन जाती हैं। हमारी इन्द्रियां भिन्न-भिन्न प्रकार के विषयों को ग्रहण करती हैं। आंख देखती है, कान सुनता है, नाक सूंघती है, जीभ चखती है और त्वचा छूती है। यह बहुत स्थूल विभाजन है। यदि सूक्ष्म में जाएं तो आंख का काम केवल देखना ही नहीं है, वह सुन भी सकती है, चख भी सकती है और सूंघ भी सकती है । जीभ का काम केवल चखना ही नहीं है, वह सुन भी सकती है। कश्यप कौमारभृत्य आयुर्वेद के महान् आचार्य कश्यप कौमारभृत्य चिकित्सा के क्षेत्र में प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। उन्होंने एक बात लिखी है—जैसे हमारे हाथ दो होते हैं वैसे ही हमारी जीभ भी दो होती हैं। वह दो भागों में बंटी होती है। जीभ के एक भाग का काम है चखना और दूसरे भाग का काम है सुनना । उनका कहना है-कान सुनता नहीं है । वह तो केवल ध्वनि को ग्रहण करता है । वह तो केवल रिसेप्टिव है । ग्रहण का माध्यम मात्र है। वह ध्वनि को ग्रहण करता है और जीभ तक पहुंचा देता है। वास्तव में जीभ ही सुनती है। उन्होंने अपने मत के समर्थन में एक महत्त्वपूर्ण तर्क दिया-एक आदमी बहरा है। यह अनिवार्य नहीं है कि वह गूंगा भी हो । किन्तु जो गूंगा है, उसका बहरा होना अनिवार्य है । जो जीभ से बोल नहीं सकता, वह गूंगा होता है और जो कानों से सुन नहीं सकता, वह बहरा होता है। जो बहरा है वह बोल भी सकता है, किन्तु जो गूंगा है, वह बोल नहीं सकता तो सुन भी नहीं सकता। जिसकी जीभ विकृत है, जो बोल नहीं सकता, गूंगा है, वह निश्चित ही बहरा होगा। यह अटल नियम है। उन्होंने बताया-गूंगा व्यक्ति इसीलिए बहरा होता है कि उसकी जीभ विकृत है, वह सुन नहीं पाती । कान ठीक हैं, वे ध्वनि को ग्रहण कर जीभ तक पहुंचा देते हैं, किन्तु जीभ पकड़ नहीं पाती, इसलिए आदमी सुन नहीं पाता। इसलिए जो गूंगा है, उसका बहरा होना जरूरी है और जो गूंगा नहीं है, जीभ में सुनने की शक्ति है, पर जिसका कान विकृत हो जाता है, वह ध्वनि को जीभ तक पहुंचा नहीं पाता, इसलिए वह सुन नहीं सकता। आज के शरीर-शास्त्रियों ने भी यह माना है कि सुनने की क्षमता जितनी दांतों की हड्डियों में है, उतनी कान में नहीं है। कान की अपेक्षा दांत अच्छा सुन सकते हैं। आज तो यह भी प्रयत्न हो रहा है कि विश्व में कोई बहरा न रहे । दांत की हड्डियों पर एक यंत्र फिट कर दिया जाएगा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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