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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र युगलों का एक साथ होना, यह भी प्राकृतिक नियम है और विरोधी धर्मों का एक साथ अवस्थान होना, सह-अस्तित्व होना-यह भी प्राकृतिक नियम है । इस नियम की व्याख्या सबसे पहले अनेकांत ने की। भारतीय दर्शनों तथा विश्व के सभी दर्शनों में सह-अस्तित्व की व्याख्या का ऐतिहासिक श्रेय यदि किसी को दिया जा सकता है तो वह अनेकान्त को ही दिया जा सकता है। अनेकान्त का आधार भी यही बना कि जब पदार्थ की प्रकृति ही ऐसी है कि उसमें विरोधी तत्वों का सहावस्थान होता है, तब हम एक ही दृष्टि से पदार्थ की व्याख्या कैसे कर सकता हैं? हम एक ही दृष्टि से जीवन या सत्य की व्याख्या कैसे कर सकते हैं? यह सहज उपलब्ध होता है कि पदार्थ या सत्य की प्रकृति के अनुरूप हम अनेक दृष्टि से उसकी व्याख्या करें, सत्य को अनेक दृष्टियों से देखें। जब पदार्थ की प्रकृति ही ऐसी है तब हम उसे कैसे बदल सकते हैं? स्वभाव में तर्क नहीं चलता। तर्क या प्रयोग वहां होता है जहां मानवकृत व्यवस्था होती है। स्वभाव के क्षेत्र में तर्क का कोई उपयोग नहीं हो सकता। सारे तर्क समाप्त हो जाते हैं, टूट जाते हैं, आगे नहीं चल पाते। जब व्यक्ति सह-अस्तित्व को समझ लेता है, जब जीवन और सत्य को व्याख्यायित करना सरल हो जाता है, तब जीवन और सत्य को एक भाषा दी जा सकती है। विरोधी को मिटाने की भावना समाप्त हो जाती है। वस्तु एक: रूप अनेक ___ अनेकान्त और अहिंसा दो नहीं हैं। अनेकान्त और मैत्री दो नहीं हैं। यदि अनेकान्त नहीं है तो अहिंसा का विकास नहीं हो सकता। यदि अनेकान्त नहीं है तो मैत्री का विकास नहीं हो सकता। अनेकान्त के बिना राग-द्वेष का उपशमन नहीं हो सकता। मनुष्य जब राग-भावना से प्रेरित होकर किसी वस्तु को देखता है, तब वह वस्तु उसे दूसरे रूप में दीखती है और जब वह उसी वस्तु को द्वेष-भावना से प्रेरित होकर देखता है तब वह दूसरे रूप में दीखती है। वस्तु एक है, पर राग या द्वेष के कारण उसका रूप बदल जाता है। एक प्रसंग है। राम ने हनुमान से पूछा-अशोक वाटिका के फूल कैसे थे? हनुमान ने कहालाल थे। सीता ने कहा-नहीं, सारे फूल सफेद थे। वहां लाल रंग का एक भी फूल नहीं था। स्थान एक, वाटिका एक, समय एक। पर दोनों के कथन दो प्रकार के। इनको हम असत्य कैसे कहें? दोनों का उत्तर यथार्थ था। राम ने कहा-हनुमान उस समय क्रोध के आवेश में थे। आंखों से खून बरस रहा था। उस समय अशोक वाटिका का चप्पा-चप्पा उन्हें लाल दिखाई दिया। कोई आश्चर्य नहीं है । सीता समरस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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