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________________ सह-अस्तित्व में लीन थी, शांत थी । उसे सब कुछ सफेद दिखाई दिया। श्वेत वर्ण शान्ति का प्रतीक है। अनेकान्त का हार्द जीवन में अनेक विरोधी प्रश्न आते हैं। उनका समाधान अनेकान्त में ही खोजा जा सकता है । यदि हमारी दृष्टि अनेकान्त की है, विरोधी बातों को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं तो हमें समाधान मिल जाता है । यदि हम सत्य को सत्य की दृष्टि से नहीं देखते, यथार्थ को यथार्थ की दृष्टि से नहीं देखते, दो विरोधी सत्यों को दो भिन्न दृष्टिकोणों से नहीं देखते, वहां संघर्ष होना अनिवार्य है। वहां कोई समाधान नहीं मिल सकता। एक ही कोण सारे सत्यों को अनावृत्त नहीं करता । संघर्ष को टालने का सबसे महत्त्वपूर्ण और अचूक उपाय है कि यह जान लिया जाए कि विश्वव्यवस्था के मूल में विरोधी युगल बराबर काम करते हैं । साथ-साथ यह नियम भी जान लेना जरूरी है कि उन विरोधी युगलों का सहावस्थान होता है, सह- अस्तित्व होता है । सर्दी और गर्मी का सह-अस्तित्व है । ऋतु-चक्र चलता है। सर्दी के बाद गर्मी और गर्मी के बाद सर्दी आती है। यह एक भिन्न तथ्य है । किन्तु सर्दी और गर्मी — दोनों साथ-साथ चलती हैं । हम जिसको सर्दी मानते हैं, वह गर्मी भी है और जिसे गर्मी मानते हैं वह सर्दी भी है । प्रकाश के बाद अंधकार और अंधकार के बाद प्रकाश का होना एक अलग बात है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होना, एक अलग प्रश्न है । अनेकान्त की दृष्टि से रात और दिन दोनों साथ-साथ चलते हैं । प्रकाश और अंधकार — दोनों साथ-साथ चलते हैं । इस हाल में सूक्ष्म लिपि नहीं पढ़ी जा सकती। पढ़ने वाला कहेगा — यहां अन्धेरा है । मैं कहता हूं-कहां है अन्धेरा ? मैं आपको देख रहा हूं, आप मुझे देख रहे हैं। यहां स्थित सारे पदार्थ दीख रहे हैं । प्रकाश के बिना वे नहीं देख पाते। यहां प्रकाश है । किन्तु सूक्ष्म लिपि को पढ़ने के लिए जितना प्रकाश चाहिए, उतना यहां नहीं है । अतः कह दिया जाता है—यहां अंधेरा है । प्रकाश और अंधकार — दोनों का सहावस्थान है, दोनों साथ-साथ चलते हैं। दोनों सापेक्ष हैं। दिन और रात —- दोनों अलग नहीं होते, दोनों का सह-अस्तित्व है, दोनों साथ-साथ चलते हैं । - परस्परोपग्रहो जीवानाम् २१ यदि हम इस सहावस्थान के नियम को समझ लेते हैं तो फिर संघर्ष के लिए कोई अवकाश नहीं रहता । तत्त्वार्थ सूत्र का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है - " परस्परोपग्रहो जीवानाम् ” – परस्पर में एक-दूसरे का सहारा - यह प्रकृति का नियम है, यह जीव-सृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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