________________
१४२
अनेकान्त है तीसरा नेत्र
असंतुलित हो जाती हैं और तब वे गलत निर्णय लेने लग जाती हैं। वैसे लोग स्वयं नष्ट होते हैं और साथ-ही-साथ सारे विश्व को विनाश की महाज्वाला में झोंक देते
इन सब स्थितियों से उबरने का एकमात्र उपाय है-स्वभाव पर्याय का बोध और यौगिक पर्यायों का परिवर्तन । स्वभाव पर्याय के उदय की और यौगिक पर्याय के परिवर्तन की चाबी है-ज्ञाता होना, भोक्ता नहीं, केवल जानना, भोगना नहीं । घटना को हम जानें, भोगें नहीं । घटना में बहें नहीं । जो व्यक्ति घटना के प्रवाह में बह जाता है वह वास्तविकता को कभी नहीं जान सकता। घटना की सच्चाई वही व्यक्ति जान सकता है जो तट पर खड़ा रहता है, घटना के साथ बह नहीं जाता। प्रवाह के भीतर घुसने वाला दलदल में फंस जाता है। जो तट पर खड़ा रहता है वह वास्तव में समझ सकता है कि क्या-क्या घटित हो रहा है।
ध्यान जानने की प्रक्रिया है। जानें, प्रत्येक घटना को जानें। जानना कोई बुरा नहीं है। अच्छी घटना को ही नहीं, बुरी घटना को भी जानें । प्रिय घटना को ही नहीं, अप्रिय घटना को भी जानें । जब जानना घटित होता हैं तब न कोई बुरी घटना होती है और न अच्छी । न कोई प्रिय घटना होती है और न कोई अप्रिय घटना। प्रियताअप्रियता, अच्छा-बुरा, सुन्दरता-असुन्दरता-ये सब घटना को भोगने के बाद होने वाली प्रतिक्रियाएं हैं। जानने के साथ इनका सम्बन्ध नहीं।
एक महान् साधक ध्यान किए जंगल में बैठा था। पूनम की रात थी। चांद की चांदनी सारी धरती पर छितरा रही थी। कुछ मनचले युवक एक सुन्दर युवती का अपहरण कर जंगल में ले गए। जैसे ही अवसर मिला, युवती भाग निकली। युवकों ने उसका पीछा किया। वे चलते-चलते वहां आ पहुंचे जहां वह साधक ध्यान में लीन था। साधक ने ध्यान सम्पन्न किया। उन युवकों ने पूछा-क्या आपने किसी सुन्दर युवती को इधर से गुजरते देखा था? साधक बोला-एक परछाई गुजरी थी। मुझे पता नहीं वह सुन्दर थी या असुन्दर? युवक बोले-सामने से गुजरी और पता तक नहीं चला कि वह सुन्दर थी या असुन्दर? यह कैसे हो सकता है तुम्हारी यह स्थिति कब से बन गई?
साधक बोला--जब से मैं अपने प्रति जागा तब से यह स्थिति बन गई। अब मैं अपने प्रति पूर्ण जागृत हो गया हूं । अब मेरे लिए न कोई सुन्दर है और न कोई असुन्दर । सब परछाइयां ही परछाइयां हैं । प्रतिबिम्ब ही प्रतिबिम्ब रह गए हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org